माना कि आज के समय भैतिकता की चकाचौंध ने सबको अंधा बना दिया हैं , जो वजूद संस्कार का था उसे आज बेगाना बना दिया हैं , जो कभी अपना ही नही था उसे प्रिय बना दिया हैं । ये पदार्थ सुख और पैसे की माया ने अपना आधिपत्य जमा लिया हैं।
परिभाषा,प्रगति ,विकास , सामर्थ्य ,और अमीरी आदि की पहचान बना दिया हैं ।इसके परिणामस्वरूप पाश्चात्य संस्कृति की छाप स्पष्टतया, घर में, बाहर में और पारस्परिक व्यवहार में झलकती है।
इसके कारण पड़ने वाले प्रभाव के बारे में यही संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि आज के समय में संस्कारों का अकाल पड़ गया हैं । जहाँ संस्कार अच्छे होंगे वहाँ परिवार सुन्दर भी हो सकता है और इसके विपरीत वह असुंदर, कष्टयुक्त भी हो सकता है |
जहाँ जीवन में संस्कार से जीने की वृत्ति होती है वहाँ जीवन स्वर्गतुल्य हो सकता है | जहाँ संस्कार की कमी से सहनशीलता नहीं होती, बात-बात में कलह होता है, मारपीट आदि होती है वहाँ जीवन अशांतिमय बन सकता है या नरकतुल्य बन सकता है |
इंसान जीता नित्य है पर अपने लिये नहीं।अपने जीवन को सही तरीक़े से जीने का सटीक फ़ार्मूला संस्कारों से युक्त यह बताया है कि सुबह उठो सूर्योदय से पहले और करो प्रभु का स्मरण फिर आगे बारी आती है नित्य करम की उसके बाद प्रातः भ्रमण और व्यायाम।फिर होती है दैनिक चर्या।
मन में रखो आत्म विश्वास।हर क़ार्य सफल नहीं होते।जब मन में होगा विश्वास तो हमको असफलता में भी भावी सफलता नजर आयेगी। अगर दिन भर में बैठने की चर्या हो तो कुछ समय बाद पाँच-दस मिनिट थोड़ा – थोड़ा टहलने की आदत डालो।
पाचन शक्ति सही रहेगी और और मांस पेशियाँ में जँक़ नहीं लगेगा। नित्य क़ार्य उचित समय पूरा करके उचित समय घर पहुँचे और कुछ समय अपने परिवार के सदस्यों के साथ बितायें । उनको जीवन के अनुभव बताओ ताकि भावी पीढ़ी आपके अनुभव अपने जीवन में उतार सके।
माइतों के अनुभव बच्चों के भावी जीवन के संस्कार होते हैं और अंत में उचित समय सोने चले जाओ ताकि अगले दिन उठो तो तरोताजा महसूश करो। अगर यह दैनिक चर्या रही तो यह जीवन सफल हो जायेगा।वह संस्कारों का अकाल खत्म हो जाएगा ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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