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बालिका : Balika

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बालिका बचपन से ही बोलना, चलना, नये शब्द पकड़ना आदि – आदि सभी क्रियाएँ बड़ी आसानी से सीख लेती हैं क्योंकि एक तो , उनके मस्तिष्क की स्लेट एकदम कोरी होती है।

दूसरी, उनकी मस्तिष्क कोशिकाओं में मुमकिन-नामुमकिन जैसी शब्दावली नहीं होती है। वह जीवन में आगे विकास होता है तो संभव-असंभव सभी चिंतन किसी के भी मन में आ सकते है ।

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वह धीरे-धीरे जैसे जैसे वे बड़ी होती जाती हैं, उनके दिमाग में, हर बात में, संभव-असंभव के प्रश्न भी खड़े होने लग जाते हैं जो स्वाभाविक है ।

वह थोडे़ कठिन काम को नामुमकिन समझ छोड़ देने की सुविधा लेने लगती है वह इसके विपरीत वे चाहें तो पहाड़ की चोटी चढ़ सकती हैं। वह हिलेरी, तेनजिंग आदि बन सकती हैं।

वह उनका न मन हो तो छोटे से काम को भी असंभव मान कर छोड़ देती हैं। अतः सारांश यह है कि शुरू से ही कठिन कामों की कोशिश न कर, छोड़ते रहने से वही आदत बनती जा सकती है और उसकी न कर सकने की मानसिकता पक्की होती जा सकती है।

उस समय वह यह भूलती जाती हैं कि असंभव कुछ भी नहीं है । वह उनके द्वारा यदि मन में ठान ली जाये तो मिहिर सेन की तरह इंगलिश चैनल भी तैर कर पार कर सकती हैं और आदि – आदि कार्य भी कर सकती है ।

हम आज के समय में देखते है कि बालिका जीवन के हर क्षेत्र में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही है । बालिका ने समाज के हर क्षेत्र में अपने आपको लगन मेहनत से बेहतरीन साबित किया है ।

हम देख सकते है कि बालक- बालिका हर जगह समान अवसर पैदा कर रहे है और कहीं – कहीं तो बालिका बालक से आगे है । बालिका घर- परिवार समाज में सदैव जुड़ाव रखती है । बालिका वर्तमान में विश्व में भी अच्छा कार्य कर रही है ।

बालिका भविष्य है , आशा है , शक्ति है और संघर्ष आदि है। जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है । वह हर भोर नया पैगाम है । वह जीवन में सफलता में फूलना और असफलता में निराशा का क्या काम है?

कोई भी कार्य हो ईमानदारी से करते चलो तो असफलता से कभी सामना होगा तो कभी जीत हासिल होगी व कामना पूरी होगी आदि – आदि ।

अतः कोशिश शिद्दत से कर हर हाल में लक्ष्य सही से पाना है । वह अंजाम जो भी हो, हार से मायूस कभी न होना है । हर दिन नया अवसर पुनः नए उत्साह से है फिर शुरुआत दुनी ऊर्जा और पुरुषार्थ से करते है तो कोशिश करने वालों की कभी भी हार होती नही है ।

बालिका का जीवन हक़ीक़त में एक रंग मंच जैसा ही होता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक तरह-तरह के रोल उसको निभाने पड़ते हैं।यह रंग मंच एक बच्चे से शुरू होता है और दादी- नानी बनने के बाद सदा-सदा के लिये समाप्त हो जाता है।

एक बच्चे से शुरू हुआ जीवन दादी- नानी बनने तक के सफ़र में जीवन के हर रोल को बालिका बख़ूबी निभाती है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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