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सबसे बेहतर : Best of The Best

best of the best
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आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हम देखे तो मानव का स्वभाव हर चीज में सदा बेहतर से बेहतर ही चाहता है। उसके कुछ उदाहरण हैं जैसे भोजन बार-बार, थोड़ी-थोड़ी देर बाद भी नहीं करना चाहिए। उससे निश्चित ही पाचन क्रिया पर विपरीत असर पड़ता है।

काल – भाव के अनुसार सम्भव हो सके तो महीने में एक उपवास कर लेना चाहिये जिससे शरीर के तंत्र को आराम मिलेगा और सक्षमता बनी रहेगी।

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भावनात्मक दृष्टि से देखें तो भोजन तनावमुक्त रह कर करना चाहिए। बहुत अधिक श्रम करके भी भोजन नहीं करना चाहिए थोड़ा विश्राम करके भोजन करना चाहिए।

भोजन के समय हमारी सभी वृत्तियाँ शांत होनी चाहिए। देखने के लिए बहुत कुछ होते हुए भी आध्यात्मिक दृष्टि से बन्द ऑंखों से भीतर में देखना ही श्रेष्ठ है जब भी कभी कोई काम करने के बारे में करूँ कि न करूँ के असमंजस तो न किसी पीर से पूछें न किसी फ़क़ीर से पूछें बस कुछ देर कर ऑँखें बन्द से अपने ज़मीर से पूछें।

उत्तर शतप्रतिशत सही बेहतर मिलेगा जो कभी ग़लत नहीं होगा। दुनिया में हर बात में बिन माँगे ही किसी को सलाह देने वाले रायचन्दों की कमी नहीं है पर आध्यात्मिक दृष्टि से अपनी आत्मा की आवाज से इंसान को अपने सारे जीवनकाल में ऐसे कार्य करने चाहिये कि लोग स्वतः ही उसकी और खिंचा चला आये।उसकी मौजूदगी ही भरी सभा में एक आकर्षण बन जाये।

वो तभी सम्भव होता है कि इंसान का मन बच्चे की तरह सच्चा,करण जैसा दानवीर, महात्मा गांधी जैसा अहिंसावादी और राम जैसा मर्यादा पालन करने वाला हो।

अगर ऐसा इंसान का जीवन होगा तो उस इंसान के जीवन की किताब का पहला और अंतिम पृष्ट तो क्या पूरी किताब ही बहुत सुंदर बेहतर होगी।

असंख्य शब्दों से जीवन में शब्दकोश भरे पड़े हैं पर आध्यात्मिक दृष्टि से अल्पभाषीता अथवा कम बोलो यह भी मौन है।जो कम बोलता है उसका दिमाग़ सही काम करता है।

इसके विपरीत ऐसा एक शब्द भी हमारे द्वारा न बोला जाये जिसे सुनते ही दूसरे को ग़ुस्सा आ जाये। हम ऐसा बोले कि बोलने से पहले तोल कर बोलें। पहले चिन्तन करें कि मैं ये बोल रहा हूँ अप्रिय तो नहीं है ना।

कोई कहता है मैं तो सच्ची सच्ची साफ बात कहता हूँ या साफ साफ बोलता हूँ पर सच्ची बात भी कैसी कहनी चाहिये पहले चिन्तन करें। साफ साफ कहने वाले के अन्दर फिर ये शक्ति भी हो कि कोई साफ़ साफ़ तुम्हें सुनाये तो क्या सहन कर सकोगे ? इसलिये अल्पभाषीता अथवा मौन हमारे लिये बेहतर होते है |

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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