भोगना ही पड़ेगा : पाप-कर्म का तो फल
सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र रूपी त्रिवेणी ही स्वर्ग और मिथ्यादर्शन,मिथ्या ज्ञान और कथनी और करनी की एकरूपता आदि न होना ही नरक है।
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