दौलत एक ऐसी मनमोहक या स्वतः आकर्षित करने वाली तितली है जो आदमी को सहज ही में आकर्षक लगने लगती है ।
फलतः उसको वह पकड़ने को दौड़ता है जो वह जल्दी से हाथ नहीं आती हैं । इधर से उधर फुर्ती से वह उड़ने लगने लगती है ।
किसी के हाथ अगर वो आ भी जाती है तो भी अधिक समय तक सही सलामत वह कहॉं रह पाती है। दौलत से सिर्फ सुविधाएँ मिल सकती हैं सुख नहीं।
दौलत से यदि सुख मिलता तो किसी भी धनपति के जीवन में कभी भी दु:ख आता ही नहीं।अत: धन से सुख मिल जाएगा यह भ्रम हम अपने मन से हम मिटा दें ।
क्योंकि करोड़पति के मन में होगा कि उसके पास एक अरबपति से कम है । वास्तव में सुख-दु:ख के निमित्त तो अपने कर्म हैं ।
महलों में रहनेवाला व्यक्ति नींद की गोली लेकर रात को सोता है और खुले आकाश में सोनेवाला गहरी नींद आराम से सोता है । साधनों की सम्पन्नता से मख़मली पलंग ख़रीद सकते हैं नींद नही ।
छप्पन भोग पा सकते हैं भूख नही । हम अपने जीवन में एक ऐसे दोराहे में खड़े हैं जहाँ एक तरफ़ पैसे का तो दूसरी तरफ़ नैतिकता का बोलबाला हैं । आखिर जाएं तो किधर जाएं ?
पैसों की हवस से कमाई ऐशो आराम और ख़ुशियों का जहां यहाँ का यहाँ धरा रह जाएगा और नैतिकता की दौलत साथ जाएगी जिससे शाश्वत आनंद मिल जाएगा और फिर कभी भी घात नहीं होगा ।
किसी ने कहा कि कितने आए शहंशाह और चले गए इस धरती से रह गयी दौलत इमारत यें रियासत यहीं पर ए नादान ! तू न कर ऐसी गुस्ताखी कभी भुल कर , कर करम नेक साथ जाएगी यें दौलत , तू इंसान बनकर ।
अतः हम ऐसी माया की तितली के पीछे क्यों दौड़े जो अपनों को हमसे बहुत पीछे छोड़ देती हैं और हम उस पंख टूटा या क्षत-विक्षत स्थिति में उस दौलत को पा लेंगे तो ऐसे पाने में क्या सार है। अपने विवेक से हम स्वयं ही समझ लें कि हम जीत रहे है या हार रहे है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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