कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जो एक वाक्य मात्र पर बहुत गहरा संदेश दे देते हैं ।इसलिए वे ग्रहण किए जाने के पात्र हैं । असफलता पर हीन भाव से ग्रसित न बन जाएं। हम समत्त्व भाव विकसायें ।
सफलता तब ही सफल कहलाती जब वह विनम्रता बढ़ाती। कुछ हासिल किया और सम्भाव में हम रहे यह बहुत बड़ा आश्चर्य कहलाता हैं । क्योंकि विनम्र सरल व्यक्ति ही दिन – प्रति दिन सफलता पा सकता है और अपना लक्ष्य हासिल कर आगे बढ़ता जाता हैं ।
जमाना तो बदला ही पर साथ में इंसान का सोच भी बदल गया।इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते हुये इंसान रिश्तों की मर्यादा भूल गया।
आज अख़बार में प्रायः पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति ने रिश्ते को तार-तार करते हुये परिवार वाले और स्वयं को जन्म देने वाले व परवरिश करने वाले माँ-बाप के साथ क्या – क्या कर दिया ।
वर्तमान समय को देखते हुये हम कह सकते हैं कि इंसान ने भौतिक सम्पदा ख़ूब इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी भावनात्मक सोच का स्थर गिरते जा रहा है।जो प्रेम-आदर अपने परिवार में बड़ों के प्रति पहले था वो आज कंहा है ?
क्योंकि मतलब से मिलने वाले क्या जानें मिलने का मतलब। हम मानव नीव के पत्थर बन जाये , शीशा बन खुद पर हम जड़ जाये , न मिटेंगे पहचान बनाने से पहले, न छिपेंगे आसमां के चांद से पहले आदि – आदि क्योंकि शीशा कमजोर तो बहुत होता है पर सच दिखाने से घबराता नहीं है।
इसलिए जीवन में हम शीशा बने । मन ही हमारा मित्र व शत्रु हैं । हम उसकी नकेल कस के रखे या उसे स्वच्छंद भटकने के लिए कहीं छोड़ देते हैं यह हमारे ऊपर निर्भर करता है ।
यदि उसे स्वच्छंद जैसा चाहे वैसे हम चलने देते हैं और बिना कोई प्रतिबंध छोड़ देते हैं तो वह हमें अपने इशारों पर नचाने लगेगा ।
उसे हमारा शासक बनते व हमें अपना दास बनाते देर नहीं लगेगी । शासक की दृष्टि से वह बहुत बुरा शासक है। बहुत उच्छृंखल शासक है।
हमारा जीवन तहस-नहस कर देने वाला प्रशासक है। इसके विपरीत अगर हम उसे अपने नियंत्रण में रखते हैं तो वफ़ादारी उसके कण – कण में भरी पड़ी रह सकती है , तब वह सेवक नहीं हमारा अभूतपूर्व सखा बन जीवन को श्रृंगार कर रख देता है ।अतः मन एक बढ़िया सेवक भी हैं और एक खतरनाक मालिक भी हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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