धर्मपरायण स्व: महेंद्र जी गेलड़ा ( बोरावड़) काकासा के चरणों में प्रदीप छाजेड़ का भावों से शत- शत वन्दन ! काकासा आपकी आत्मा जहाँ कहीं हो वह जल्द से जल्द अपने अन्तिम लक्ष्य मोक्ष का वरण करे ।
मैंने वह कितनों ने सामने प्रत्यक्ष रूप में काकासा की कर्मठता , बौद्धिक प्रबुद्धता , आध्यात्मिक , व्यावहारिक , मानसिक आदि अनेक तरह के महत्वपुर्ण प्रभावशाली गुण देखें है ।
आप धर्म ध्यान में सदैव रत रहते थे । आपने अपने जीवन में बहुत तपस्या की थी । हम उनके गुणों के माध्यम से अपने जीवन व्यवहार को आचरण में लाए जिससे अपने जीवन को आदर्श बना सके ।
यह बिलकुल सत्य है कि इंसान धन से बड़ा नहीं होता है , बड़ा वो ही होता है जो देना जानता है वह जिसकी देने की भावना हो। हम समाज में रहते हैं।
समाज की विभिन्न तरह की संस्थाएँ होती है। वह उसको सही तरीक़े से निरन्तर चलाने के लिये धन और श्रम आदि की भी आवश्यकता होती है।
वह जो सम्पन्न होते हैं वो धन का विसर्जन करते हैं तो कोई अपना अमूल्य समय देते हैं। अतः गुणगान दोनो का ही होता है। हम अपने माँ-बाप को पुजते हैं क्योंकि वो हमारे जन्म से लेकर जब तक हम अपने पाँव पर खड़े नहीं हो जाते तब तक वो हम्हें देते ही रहते हैं।
वह चाहे हो अच्छे संस्कार या परिवार का नाम,अच्छी शिक्षा और हमारा घर बसाना आदि – आदि ।वह गुरु भी सांसारिक सुविधाओं का त्याग करके हम्हें ज्ञान देते हैं , हमको अपने जीवन में धर्म का मर्म सही से समझाते हैं इसीलिये हम उनको पुजते हैं।
काकासा आपकी लेखन कला सुन्दर थी । आप काकासा तत्व ज्ञान वह धर्म – ध्यान आदि की मेरे वह साधु- साध्वी संग घंटों- घंटों तक चर्चा करते वह उसका आप मैं सब मिल प्रश्न- उतर करते रहते थे । उस समय हम धर्म के विषय में गहरी गम्भीर बातें करते थे ।
किसने सोचा था कि आप दिनांक- 31 दिसम्बर 2024 को सुनयना, विकास व सभी को खुशी- खुशी साथ में कुछ दिन रह विदा कर यों अचानक से 19 जनवरी 2025 को प्रातः सूर्योदय से पूर्व यहाँ से 68 वर्ष की उम्र में अगले भव के लिए विदा हो जाओगे ।
स्व : महेंद्र जी काकासा के लिए लिखने को मेरे पास पर्याप्त ज्ञान भी नहीं है वह मैं उनके लिए लिखूँ उतना कम है । काकासा आपके यों अचानक चले जाने पर हम अपने जीवन के लिए अच्छा करने को प्रेरित हो ।
हम अपने विगत समय की कालावधि का सही से पूरा लेखाजोखा लें या अनुभव एक अनोखा लें। हमने उस समय क्या-क्या नूतन किया वह उस समय को हमने कैसे बिताया ?
हम उस समय क्या-क्या नहीं कर पाए । हम उस समय का सही से विश्लेषण करें कि किस कारण से जिसका स्वप्न संजोया था वह पूरा नहीं हो पाया था।
यह समय दरअसल एक सही से तलपट बनाने का है । हमारे कितनों के संग संबंध सुधरे , हमसे प्यारे कितने दूर हो गए ।हम आगे की भी सूची बनायें कि अब हमको क्या कुछ करना है। हमको पूरा चिन्तन करके उसके लिए संकल्पबद्ध भी होना है।
हमारे जीवन में आयें चाहे कितनी ही बाधाएँ, हमें अपने प्रण पर दृढ़ रहना है। हमको केवल भौतिकता का ही चिन्तन नहीं करना है , आध्यात्मिकता में भी आगे बढ़ना है।
हमारे जीवन में ज्ञान , विनम्रता, बुद्धि, भीतर का साहस, अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत आदि और ईश्वर में सच्चा विश्वास है जो हमको किसी भी विपत्ति से बचाएगा।
कहते हैं कि इंसान मरा करते हैं, विश्वास नही मरता, नामुमकिन को मुमकिन विश्वास किया करता हैं, सपने सच हो जाते हैं ,हर दुआ काम आती हैं, मगर कभी – कभी हमारा विश्वास तो अकर्मणयता के कारण पर पानी के बुलबुले समान हो जाता है जो मिनटों में डगमगा जाता है।
सच में ये विश्वास हमारी ज़िंदगी के हर पल के एहसास में हैं जो दुनिया के विस्तृत अनुभव में हैं जैसे नन्हें बालक की मासूम आँखों में हैं और उम्र से झुकी हुई वृद्ध की कमर में हैं।
यह विश्वास की डोर ऐसी हैं जो अपनों को खिंच लाती हैं क्योंकि विश्वास जीवन रूपी इमारत की नींव हैं। विश्वास ही हैं जो हर सुबह सूरज की किरण को नया दिन बनाता है।
विश्वास ही हैं जो आसमान में लाखों तारें प्रज्वलित करता हैं। विश्वास ही हैं जो मानता हैं ख़्वाब हक़ीक़त का प्रथम स्वरूप हैं।
अतः हम अपने मन के अधीन न हो, हम मन को अपने अधीन (वश) में करते हुए, अपने स्वयं को बदलतें हुए, अपनी आत्मा को उज्जवल करनें का प्रयास करें। यही हमारे लिए काम्य है ।
अन्त में मैं काकासा की आत्मा के प्रति पुनः यह मंगलकामना करता हूँ की आपकी आत्मा जहाँ कही भी हो वो कर्मों की उदीरणा करते हुए भव – भवान्तर के इस संसारचक्र से जल्दी से जल्दी मुक्त हो और आत्मा का चरम लक्ष्य मोक्ष को वो प्राप्त कर अवस्थित हो । इन्हीं शुभ भावो के साथ मैं काकासा के चरणों में शत् – शत् बारम्बार वंदन करता हूँ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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