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इदम न मम : भाग-3

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अतः इससे हमारा जीवन सरल रहेगा यह हम मान कर चलें। सिकंदर को विश्व विजय की लालसा थी लेकिन वह भी अपने शौर्य और पराक्रम के मद में चूर रहा और अंत में मिला क्या।

कब्र में बाहर किये हुए दोनों हाथ, लोगों को ये सीख देने कि जब सिकंदर पृथ्वी पर कुछ ले न जा सका तो, संसार में कोई भी कुछ लेकर जा नहीं सकता, घमंड के कारण कितना रक्तपात होता है, थोड़ी सी आन बान शान पर महाभारत जैसा युद्ध हो जाता है।

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इसलिए ज्ञान हो बल हो धन हो या यश हो आदि इस पर ज़रा भी हम घमंड न करें, अर्थात :- जिस वृक्ष में बहुत फल लगते हैं वो डाल नीचे झुकी होती है, जो गुणी लोग होते हैं वे हमेशा विनम्र होते हैं I

हमारी आशाएँ और आकांक्षाएँ हम्हें आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है पर हर इंसान मन में यह सोच कर चले कि मैंने अपने मन में आकांक्षाएँ और आशाएँ तो बहुत की अगर उसका परिणाम हमारे अनुकूल हुआ तो बहुत अच्छी बात है और परिणाम आशाएँ के विपरीत रहा तो कोई बात नहीं।

वह जो मेरे भाग्य में था उसी में संतोष है। हम मन में यह भी सोचें की जो मुझे प्राप्त हुआ उतना तो बहुत लोगों को भी नसीब में भी नहीं इसलिये जीवन में आशाएँ और आकांक्षाएँ ज़रूर रखो पर पूरी नहीं होने पर जो प्राप्त हुआ उसमें संतोष करना सीखो।

हम इस ध्रुव सत्य कों समझें, आत्मा अमर है, काया नश्वर है । जैसे हम रोज़ कपड़े बदलते हैं वैसे ही आत्मा अपना समय पूरा होते ही उस शरीर से निकल कर दूसरा चोला धारण कर लेती है।

हमको मनुष्य जन्म मिला यह हम सभी जानते हैं कि अंत समय जब इस दुनियाँ से विदा होंगे तब एक फ़ुटी कोड़ी भी साथ नहीं ले जा सकते। यह ध्रुव सत्य हम जानते हैं पर अमल नहीं करते है जिसने इस मर्म को समझ लिया उसे जीवन जीना आ गया।

अतः हम इस नश्वर तन के द्वारा अपनी अमर आत्मा के लिए, त्याग, तपस्या, साधना आदि करते हुवें, इस दुर्लभतम मनुष्य जीवन का पूरा सही से सार निकालते हुवें, हम अपने परम् लक्ष्य की और बढ़ते हुवें, हम अपने धर्म का टिफिन तैयार रखें, जिससे ज़ब भी हमारा आयुष्य बंध हों, हम अपने धर्म का टिफिन साथ लेकर जायें, जिससे हमारा यह भव भी और पर भव भी सार्थक हों। यही हमारे लिए सदैव काम्य है।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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