माँ का नाम आते ही भीतर में अलग ही तरह की स्फुरणा होती है जो निःशब्द होती हैं । हमारे जीवन में सबसे खूबसूरत दिन कोई है तो वह मातृ दिवस हैं क्योंकि माँ शब्द ऐसा अहसास है जिसका कोई भी मौल नहीं है , तुलना नहीं हैं ।
हमारे को संसार में लाने वाली माँ ही हैं । ऐसी कोई तूला या वस्तु नहीं बनी है और न आगे कभी बन सकेगी जो माँ की ममता , करुणा , प्रेम , अहसास आदि को तौल सके । माँ के माँ बनने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है हमारे औदारिक शरीर वाले प्राणियों में एक नर यानी पुरुष की।
संसारी जीव जैसे आत्मा और शरीर का संयोग है, वैसे हीऔदारिक शरीर वाले जीव भी नर और मादा के संयोग से सृष्टि के निर्माण करते है।
एक औरत को माँ बनाने वाला उसका पति होता है, तब वो माँ बनती हैं और अपना सारा प्यार निस्वार्थ भाव से वह बच्चे पर लुटा देती है ।
हमारे जीवन में माँ की भूमिका हमेशा अन्य की तुलना में अलग और कीमती होती है। माँ अपने बच्चों से कभी भी कुछ वापस नहीं चाहती है बल्कि वह हमसे खुले दिल से प्यार करती है।
हम एक बच्चे के रूप में भी अपनी माँ को प्यार करते हैं और उसे अपने दिल से देखते हैं लेकिन हमारे प्यार की तुलना उसके साथ कभी भी नहीं की जा सकती हैं ।
माँ इस दुनिया में हर किसी के जीवन में एक अद्वितीय देवी के रूप में अद्वितीय है जो हमेशा अपने बच्चे के सभी दर्द लें लेती है , सहन कर लेती है और उजागर नहीं करती है व प्यार से देखभाल देती है। हर इंसान की जीवन यात्रा की शुरुआत माँ से होती है।
जब से कोई माँ के कोख में आता है तो ना जाने कितने – कितने कष्ट उठाकर एक जीव को माँ जन्म देती है। रातों – रातों जग – जग कर बच्चे की माँ परवरिश करती है ।
माँ अपने स्थन से बच्चे को दुध पिलाकर बड़ा करती है । हमारे जीवन की प्रथम गुरु माँ होती है । माँ अच्छे बुरे का ज्ञान सिखाती है ।
माँ पहले बच्चे को खिलाकर बाद में जो बचता है वो खाती है और अगर उसके बच्चे को ज़रूरत हो अंग दान की तो सबसे पहले अपना अंग दान देकर नयी ज़िंदगी देने वाली माँ होती है ।
हर मुसीबत में कोई साथ दे या ना दे पर वो एक माँ ही होती है जो हर मुसीबत में ढाल बन कर सदैव बच्चे के साथ खड़ी रहती है ।
संसार में एक माँ ही ऐसी होती है जो अपनी औलाद कैसी ही हो वो कभी भी उसको दुरासीस नहीं देती हैं । माँ है तो घर आबाद है बिन माँ घर सुना-सुना है । माँ का दर्जा भगवान से कम नहीं हैं ।
कहते हैं कि जो इंसान माँ की पुज़ा करता है उसको मंदिर जाने की ज़रूरत ही नहीं होती हैं ।माँ कि निस्वार्थ सेवा का पूरा ऋण हम एक जन्म में तो क्या कई जन्म लेकर भी चुकाने में शायद ही सक्षम हो पाते हैं।
माँ को हम नित्यप्रति बिस्तर छोड़ने के साथ स्पर्श करके, वन्दन करके आशीर्वाद पाकर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
माँ सभी जैसे मातृभूमि,धरती माँ,गो माँ आदि सब बहुत सम्माननीय होती हैं। हम सदा माँ का सम्मान करके अपने जीवन को सफल बनायें।
माँ को मेरा श्रद्धासिक्त नमन। हमारा कल्याण करने वाले तीर्थंकरों की, आचार्यवरों आदि सभी की माताओं को व सृष्टि की सभी माताओं को मेरा भाव भरा वन्दन, नमन।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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