संवेदनशीलता की उच्चतम पराकाष्ठा का जीवंत उदाहरण है चिकित्सक और मरीज का रिष्ता! चिकित्सा सेवा को दुनिया के सबसे अच्छे व्यवसाय की उपाधि दी गई है परन्तु इस ‘‘व्यवसाय’’ शब्द ने चिकित्सक और मरीज की संवेदनशीलता के बीच एक दरार ला दी है जिसकी जिम्मेदारी सिर्फ एक ही पक्ष पर थोपी जाती है जबकि ऐसा नही है। 20वीं सदी के मध्य तक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की संरचना धीरे धीरे विकसित हुई।
1960-1970 के दशक में सभी प्रकार की सत्ता को चुनोति दी गई। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों, संवेदनशील निदान पद्धति व सुसज्जित पांच सितारा अस्पतालों में मिलती अन्य आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं ने मरीज व परिजनों के दिल को सुकून तो पहुंचाया पर एवज में सामाजिक वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि चिकित्सा ने अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए अपने एकाधिकार का दुरूपयोग किया है।
अपने लाभ के लिए विनियमन किया है। 1984 की एक पुस्तक में पाॅल स्टार ने समाज के साथ चिकित्सा के संबन्ध का वर्णन करने के लिए ‘‘सामाजिक अनुबंध’’ शब्द का इस्तेमाल किया है जिसमें आधुनिक चिकित्सा और समकालीन समाज दोनो की जटिलताओं का वर्णन किया गया है।
चिकित्सा पेशे से समाज की अपेक्षाएं कुछ हद तक पूरी की जा सकती है, परन्तु नियति के ऊपर जाकर चिकित्सक को भगवान के दर्जे के रूप में पूजे जाना आज के युग में असंभव है। चिकित्सा की सामाजिक अपेक्षाओं में चिकित्सक की उपलब्धता, योग्यता, परोपकार, का भाव, नैतिकता, सत्य निष्ठा, पारदर्शिता, विचार विमर्श एवं देखभाल की गारंटी तक व्यक्ति के हाथ में है। जवाबदेही एक ऐसा बिंदु है जो इन संबन्धों में तनाव का कारण है। इसी प्रकार निदान प्रक्रिया, संसाधनों जैसे दवाइयां, उपकरणों का महंगा होना भी तनाव बढ़ने का कारण है।
दूसरी ओर चिकित्सकों का ये मानना है कि चिकित्सक और मरीज का रिश्ता एक सामाजिक अनुबंध है, जिसमें दोनो पक्षों के दायित्व शामिल होते है। चिकित्सकों में व्याप्त असंतोष इस बात से जुड़ा है कि समाज अपने हितों के प्रति लापरवाह हो रहा है जिसमें वित्तीय मुददा अहम है और चिकित्सक के प्रति खोता विश्वास भी सम्मान की कमी का एक कारण है।
चिकित्सा के क्षेत्र में निगमीकरण की व्यवस्था ने चिकित्सा के व्यवसायीकरण को बढ़ावा दिया है जिसमें चिकित्सक की भूमिका मात्र उपचार तक सीमित हो जाती है। अन्य बिलीकरण व्यवस्थाओं इत्यादि व्यवसायों पर चिकित्सक के हाथ बंधे हुए होते है। आर्थिक मुददों पर भी चिकित्सक पर ही उंगली उठाई जाती है।
चिकित्सा के अभ्यास के लिए स्वायत्तता की महती आवश्यकता है जिसे समाज ने दरकिनार कर दिया है। चिकित्सक को अपने मरीज के सर्वोतम हित मे कार्य करने के लिए पर्याप्त स्वायत्तता की उम्मीद होती है आज के समय में सीमाएं निर्धारित करने वाले कानून, आचार संहिता एवं कानूनी बाधाओं के चलते चिकित्सक के प्रयासों को प्रतिबंधित किया जा रहा है व स्वायत्तता का हनन हो रहा है।
इस पेशे की सुदृढ़ता हेतु पर्याप्त स्वायत्तता व स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है जिस पर आज आए दिन प्रहार होते है। उच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा ग्रहण कर सक्षम सेवा के प्रति समर्पित चिकित्सकों के लिए समाज का खोता विश्वास भी इस अनुबंध की विफलता का कारण है।
लाइसेंसिंग कानूनों के तहत चिकित्सकों को दवा लिखने का एकाधिकार प्रदान किया गया है। लंबी शिक्षा, उच्च मानकों का निर्धारण और प्रशिक्षण की आवश्यकता निर्धारित की गई है। अतः चिकित्सक समाज में एकाधिकार कायम रखने की उम्मीद करता है। किसी भी चिकित्सक को उच्चत्तम गुणवत्ता पूर्ण श्रेष्ठ चिकित्सा प्रणाली के तहत कार्य करने का अवसर मिले उसके लिए पर्याप्त संसाधन विश्वास, स्वायत्तता व सम्मान उपलब्ध कराना समाज का भी दायित्व है ताकि चिकित्सक अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा कर सके।
आधुनिक समाज में स्वास्थ्य सेवाओं एवं समाज के बीच तनाव की वजह से चिकित्सकीय क्षमता का ह्रास हो रहा है जो चिकित्सकीय पेशे को चुनौति पूर्ण बनाता है। स्वास्थ्य सेवाओं के निगमीकरण ने इसे अन्य व्यवसाय की तरह बना दिया है, चिकित्सा पेशे को समाज मे सेवाओं के बजाय लाभ के पेशे के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
जो चिकित्सक व समाज के रिश्ते को असंवेदनशील बनाता है। दूसरी ओर चिकित्सक के प्रति खोता धैर्य, विष्वास व शत प्रतिशत सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा डाक्टरों के प्रति अन्य हिंसा और कदाचार के मामलें डाक्टरों के बहुमूल्य कैरियर व प्रेक्टिस पर आघात पहुंचाते है जो चिकित्सकों के लिए ही नहीं अपितु सामाजिक रूप से भी चिंता का विषय है।
दोनो पक्षों को अपने अपने दायित्वों को समझने की दरकार व पारस्परिक अपेक्षाओं का सम्मान ही इस चिकित्सा और सामाजिक अनुबंध को सही दिशा प्रदान कर सकता है।
यदि दोनो पक्ष अपने अपने दायित्वों व कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी पूरे सम्मानजनक रवैये के साथ रखेंगे तो यह ‘‘सामाजिक अनुबंध’’ मानवता की सही मायने में सेवा कर पायेगा अन्यथा तनाव रहेगा व चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता पर कुप्रभाव पड़ेगा जो निश्चित रूप से चिकित्सकीय भावना को ठेस तो पहुंचाएगा ही समाज के लिए भी दर्दनाक होगा।
डाॅ मीनाक्षी शर्मा
( स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ )
नवलगढ़ झुंझुनू राजस्थान
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