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वाणी (सरस्वती) वरदान | शब्दों की दुनिया | वाक् – शक्ति : भाग 2

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वह जब उसका ताला खुलता है, तभी तो उसका हमको सही से मालूम पड़ता है कि दुकान सोने की या कोयले की है।

अतः हमें हमेशा मीठे बोल बोलने चाहिए, क्योंकि यह समंदर के वह मोती हैं, जिनसे इंसानों की पहचान होती है, नरम शब्दों से हमेशा सख्त दिलों को जीता जा सकता है।

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हमें कोई अप शब्द कहें और हम उसे स्वीकार नही करें तों वो शब्द पुनः उनके पास ही जायेंगे । अतः हम भी, हर परिस्थिति में नकारात्मकता सें दूर रहकर, सकारात्मक जीवन जीने की कोशिश करें।

शब्द की एक सही चोट, हमारे जीवन की सही से दिशा-दशा को बदल सकती है।सूरज की एक किरण, तिमिर के साम्राज्य को ध्वस्त कर सकती है।

महत्व क्षमता और शक्ति का है, केवल फैलाव या विस्तार का नहीं क्योंकि जहर की एक बूंद हजारों प्राणों का, क्षण मे हरण कर सकती है। हमारे मुख से निकले हुए शब्द केवल हमारी भाषा ही नहीं है बल्कि वह शब्द बड़े शक्तिशाली होते है ।

वह शब्दों की महिमा बड़ी ही निराली हैं। हमारे मुख से निकला हुआ एक-एक शब्द क्षण भर में ही ब्रह्मांड में व्याप्त हो जाता है , दुनियाभर की सैर कर लेता है।

अध्यात्म जगत के दिनकर, मनीषा के शिखर पुरुष,प्रज्ञा के निर्झर,तेरापंथ धर्मसंघ के दशम अधिशास्ता, विश्व साहित्य में सरस्वती के समीप बैठने की योग्यता रखने वाले महाकवी प्रेक्षाप्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी जिनका एक प्रवचन जीवन की दिशा बदल सकता है।

जिनका हर एक प्रवचन विश्व के लिए अनमोल धरोहर है , जिनका हर एक प्रवचन जीवन और जगत की समस्याओं का समाधान आदि – आदि प्रस्तुत करता है। वह जो स्वयं समाधान के सूत्रों के अनुसंधाता और प्रयोक्ता है।
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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