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क्यों चाहिए अच्छे मित्र एवं आलोचक

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कभी – कभी कुछ अजीब सा सवाल पूछ लिया जाता है । जैसे पूछ लिया किसी ने कि आदमी को क्यों चाहिए जीवन में अच्छा मित्र एवं आलोचक ?

यह सुन किसी समझदार ने कुछ चिन्तन कर दिया तर्कसंगत उत्तर कि कुदरत ने की है हमारे शरीर की संरचना कुछ इस कदर कि न तो आदमी अपने अच्छे कृत्य के लिए स्वयं पीठ अपनी थपथपा सकता है और न ही अपनी भूलों के लिए पीठ पर मार कर खुद को दँडित कभी कर सकता है ।

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मैंने मेरे जीवन में देखा अनुभव किया है कि जीवन में आलोचक व अच्छे मित्र दोनों होना चाहिये । आलोचक हमेशा हमारी गलती को देखने की और अग्रसर रहता है व आलोचक को हमारे हर कार्य मे कसर ही दिखाई देती है ।

आपका कार्य कितना भी बढ़िया क्यों ना हो दुनियां चाहे कितना भी सराहे लेकिन आलोचक उसमे कोई ना कोई कमी निकाल ही देता है इसका दूसरा पहलू यह भी है कि यदि आप आलोचक के कहे अनुसार उसमे सुधार कर लेते हैं तो वो सोने पर सुहागा हो जाता है फिर आप बेधड़क होकर उस कार्य का प्रदर्शन कर सकते हैं क्योंकि आपने आलोचक के दृष्टिकोण से देखा है वह निखार लायें हैं । मित्र हमेशा हमारे सुख – दुःख को बाँटने वाले होते है ।

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मित्र से बात करते है तो हमारे जीवन में कुछ सेकंड की मुस्कुराहट से तस्वीर अच्छी आ सकती है तो हमेशा मुस्कुरा कर जीवन जीने से जीवन अच्छा क्यों नहीं हो सकता है ।

स्वयं के स्वयं मित्र बन कर मुस्कुराने की हम आदत डाले क्योंकि रुलाने वालों की यहाँ कमी नहीं है| सबके लिये हम प्रोत्साहित करने की आदत डाले क्योंकि हतोत्साहित करने वालों की यहाँ कमी नहीं है| इसलिये स्वयं के मित्र बनकर सदैव चेहरे पर हमारे मुस्कराहट हमेशा होनी चाहिये ।

क्योंकि एक स्माइल से फोटो अच्छी आ सकती है तो मुस्कराहट सें जिन्दगी कितनी अच्छी व खूबसूरत हो सकती है।अतः मुस्कराहट से हम जीवन जिये । इसलिये हमे अच्छे मित्र एवं आलोचक दोनों जीवन में चाहिये ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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