हम आज के समय में देखते है कि कैंसर जैसी असाध्य बीमारी कितनों को घेर रही है । यह चिंतनीय विषय है ।अब प्रश्न आता है कि हम इससे कैसे बचे? हम स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए तनाव से दूर रहकर आदि उपायों से कैसर या किसी भी तरह की बीमारी से दूर रह सकते है । अब प्रश्न उठता है कि तनाव कैसे आता है ? कैसे दूर करे ?
आदि – आदि । हम अपने जीवन में जब कभी किसी कार्य को सही से नहीं करते या फिर हम किसी कार्य को परिणाम तक नहीं पहुँचा पाते है आदि – आदि तो हमें उसके बाद तनाव होने लगता है। वह हमारे को जब जीवन में समस्या आती है, तो हम अपने दिमाग और धन आदि के माध्यम से उसका समाधान ढूँढता का प्रयास करते है।
यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगेगा लेकिन शिक्षा, ज्ञान और धन आदि का अभाव (ना होने की वजह से) हमारे जीवन में सबसे अधिक तनाव पैदा करता है। हमारे द्वारा आवेगों को रोकने का मतलब अपने आप से दूर होना हैं क्योंकि उनका स्वभाव स्वतः बहना है ।
अतः समझदारी यही है कि जो बहना चाहे उसे रोका ना जाये । हम जब अपने विचार, संवेदना और स्वभाव के विरुद्ध आदि चलने का प्रयास करते है, तब हम तनावग्रस्त रहते है । हम इसलिए उन्हें सँवारने का प्रयास करें, रोकने का नहीं ।हम देखते है कि रात सुबह का इंतज़ार नहीं करती , खुशबु मौसम का इंतज़ार नहीं करती आदि – आदि अतः हमको जो भी ख़ुशी मिले हम उसका आनंद ले क्योंकि जिंदगी वक़्त का इंतज़ार नहीं करती है ।
हमे यह सही से समझना होगा कि जीवन होना और सहज, सरल जीवन होना क्या है आदि – आदि । हम यह फर्क को खुद जाने, अनुभूति करें आदि – आदि । एक कहावत है कि दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी टेंशन -तनाव है, तनाव विचारों की खिड़की से मेहमान बनकर आता है । हम अब इससे छूटे कैसे तो , तो बस !
हम स्वागत आध्यात्मिक गाकर, कसरत कर अपनी सुप्त शक्तियों को जगाए आदि – आदि करे । हम इस तरह भावों की घुटन दूर करे ,,हाँ.. अगर वह नकरात्मक हो जाए तो..हम उसे मन की खिड़की से बाहर कर दे जिससे हमारा तनाव दूर हो सकता है क्योंकि हमारी आत्मा की शक्ति किसी भी आत्मा से कम नहीं है ।हमारी आत्मा ही कर्ता है ।
अतः हमको जरूरत है – अपनी आत्म शक्ति को जगाते रखने की और हर निराशा के भूत को दूर से ही भगाते रहने की । हमारा शरीर अत्यधिक आराम करने के लिए नहीं बना है , वह ना ही अत्यधिक चिन्ता व मानसिक थकान आदि झेलने के लिए है ।
हमने बस ! इन्हीं दो चीजों से अपने आपको भरपूर बचा कर रख लिया तो सदैव हमारा जीवन असाध्य व्याधियों से दूर रहेगा । हम देखते है कि हमको छोटी-मोटी शारीरिक विसंगति आदि होते ही डॉक्टर के पास या दवाई की दूकान दौड़ कर जाते हैं और यह इंजेक्शन, वह गोली, फलॉं खुराक आदि लेने में अपनी शान समझ लेते हैं कि हमने शरीर का ध्यान कितना रख लिया।
अतः हम जहाँ तक हो सके अपने स्वास्थ्य को सदा प्राथमिकता दें वह उसके लिए जो समुचित हो सर्वदा करते रहें।हम अपने शरीर को कोल्हू के बैल की तरह कभी न जोतें। हम समय पर खाएँ, समय पर सोएँ।
हम प्रातः भ्रमण, व्यायाम, प्राणायाम-योग आदि का नियमित काल- भाव की अनुकूलता कर सुयोग रखें। हम देखते है कि अंतहीन इच्छाओं की पूर्ति कभी भी किसी की भी न आज तक हुई है और न हो सकती है।
अतः हम संतुष्ट रहना सीखें। वह प्राप्त ही पर्याप्त है कि गाँठ बाँध लें। हमारा अपना शरीर ही सबसे महत्वपूर्ण है ।हम सही से अपने शरीर को स्वस्थ रखने का हमारी प्राथमिकता में रखें वह सदा जितना हो प्रयास करे और बाकी सब गौण करे । हम शरीर को रोज एक दो घंटा दे और पूरा स्वास्थ्य का आनन्द पाए जिससे हम किसी भी तरह की बीमारी आदि से बच सके । यही हमारे लिए काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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