” Discipline is being able to force yourself to do something, in spite of how we feel, over and over until it becomes a habit.” ( अपने से अपना अनुशासन )
अनुशासन यानी नियंत्रण अपनी हर प्रवृति पर विचारों में, कार्यों में, सोच में आदि । बहुत कठिन हैं यह कार्य । खुद पर शासन करना ।मैंने देखा व अनुभव किया की बहुत से लोग चाहते हैं की हम समाज संस्था में अध्यक्ष , मंत्री आदि बने और पुराने ,अपनी पकड़ छोड़ना नहीं चाहते ।
अर्हत-वंदना में बहुत सुंदर बताया गया है कि 10 हज़ार योद्धाओं को जितना आसान है,लेकिन एक अपनी आत्मा को जीतना उससे भी दुष्कर है। गुरुदेव तुलसी ने भी, निज पर शासन -फिर अनुशासन को हमें अपने जीवन में अपनाने की सुंदर प्रेरणा दी है।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यानपद्दति में आत्मा से आत्मा को देखने की प्रेक्षा बताई है ,जो हमें आत्मा पर अनुशासन करना सीखाती है। हमें अपने दैनिक जीवन में अनुशासित रहना उतना ही जरूरी है,जितना शरीरका आत्मा की साधना में जरूरी।
महात्मा गाँधी अपने जीवन की किसी भी गतिविधि में नहीं सहन करते थे अनुशासनहीनता। एक बार किसी यात्रा में दो मिनट की देरी हो गई,तो उनका मन बहुत दुखी हो गया और उन्होंने इसका पश्चाताप किया। तेरापंथ धर्मसंघ का मूल आधार ही है अनुशासन,एक गुरु और एक विधान।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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