जो जितना हल्का होता है वह ऊपर को जाता हैं । भार मुक्त बनने से अहंकार मर जाता हैं । हम जमीन से जुड़कर ही ऊंचे उठ पाते हैं।जितनी होती गहरी जड़ ऊपर से ऊपर को हम जाते हैं ।
हमारे ज्ञानीजन का कहना है जो यह बात अलग ही आनन्द देती हैं कि अपनी सुबह की दिनचर्या में अज्ञात शक्ति के प्रति हम कृतज्ञता का भाव लाने के लिए संस्कारों को जरूर शामिल करें।न केवल इसमें शामिल ही करें बल्कि दिल से वैसा हम महसूस भी करें।
अपने जीवन में मौजूद प्रिय लोगों, अच्छी घटनाओं और ऐसी आनंददायक स्थितियों के लिए हम अज्ञात शक्ति के प्रति सदैव कृतज्ञता ज्ञापित करें। वह साथ में हमारे जीवन में मौजूद छोटी-छोटी खुशियों के लिए भी हम शुक्रिया अदा करें।
क्योंकि अगर कोई ऐसा है जो छोटे-मोटे सुखों के लिए भी मन से कृतज्ञता का भाव रखता है तो निश्चित ही वह सुख संतोष व शांति का आनन्द चखता है। शेक्सपियर ने प्रभु से अपील की मुझे ऐसा दिल देवें जो कृतज्ञता से सरोबार हो ।
हम चाहते हैं कि उऋण बन सकें। आगे के लिए साथ में भार न रह जाये क्योंकि कर्ज कर्ज ही होता है चाहे वह रुपये का हो या हो उपकार का आदि – आदि ।
रुपयों का कर्ज उतारना कठिन नहीं है पर उपकार की कृतज्ञता करना बड़ा कठिन काम हैं । हर कोई ऐसा दिल नहीं पाता हैं इसीलिए शेक्सपियर ने यह अपनी और से अपील की ।
सृष्टि के कण-कण के प्रति हम अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करें। स्नेहमयी मधुर मुस्कान के साथ एक मौन संवाद स्थापित करें।जिन्दगी की सुखद बुनियाद हमारे अपने सात्विक कर्मों से जुङी है| इसलिए हर पल सकारात्मक भावों से अपने आपको भावित करें।
इस तरह अगर हम जीवन के हर क्षण को उपहार मानते हुए मन में कृतज्ञता भाव लाएँ और इसे अपना आध्यात्मिक संस्कार बना लें तो वह हमारा आनंद और समृद्धि वर्धमान करेगा।इसे रोज़ सुबह की भगवद् प्रार्थना का हम अंग बना लें और आगे जीवन में इसका सही से सकारात्मक असर भी देखें।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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