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वृद्धावस्था में स्वास्थ्य की किस तरह देख-भाल करें

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बुढ़ापा खुद एक समस्या है।यदि हम अपने शरीर की तुलना किसी किले से करें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. जिस तरह से एक नव-निर्मित किला मजबूत होता है कि वह हर तरह के मौसम की मार झेल सकता है. भीषण बरसात को सह सकता है. कड़कड़ाती बिजली का झटका सह सकता है।

यह सब एक निर्धारित सीमा के भीतर ही होता है. जैसे-जैसे किला पुराना होता चला जाता है, उसका आधार भी कमजोर होने लगता है. पलस्तर झड़ने लगता है. फ़िर ईंटे खिसकने लगती है. बरसात का पानी जगह-जगह समाने लगता है और एक समय ऎसा भी आता है कि उसका एक-एक हिस्सा गिरने लगता है और एक दिन वह जमींदोज हो जाता है।

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ठीक इसी तरह हमारे शरीर का किला भी एक दिन कमजोर होने लगता है. शरीर के कमजोर होते ही अनेकानेक समस्याएं उठ खड़ी होती है. आदमी जानता है कि अधिक समय तक वह युवा बना नहीं रह सकता. एक न एक दिन बुढ़ापा आएगा ही।

यह निश्चित है. अकाट्य सत्य है. जिसे झुठलाया नहीं जा सकता. जानने-बूझने के बावजूद वह लापरवाह बना रहता है और एक समय ऎसा आ जाता है कि वह असहाय बन जाता है. हड्डियां गलने लगती हैं. याददाश्त कमजोर होने लगती है. कानों से सुनाई देना कम हो जाता है. कभी-कभी तो कुछ भी सुनाई नहीं देता. आँखें कमजोर होने लगती है. दिखाई देना कम होने लगता है।

शारीरिक परेशानियों को झेलते-झेलते वह बात-बात पर झुंझलाने लगता है. उसका स्वभाव चिड़चिडा होने लगता है. शक करने की बिमारी भी आ घेरती है। इस असहाय अवस्था में लोग साथ देना बंद करने लगते है. परिवार के लोग भी उसकी हरकतों को कुछ दिन तक तो झेलते हैं फ़िर वे भी उससे परेशान से- खींचे-खींचे से रहने लगते है।

सबसे बड़ी समस्या तो उस समय होती है जब वह बिस्तर ही पकड़ लेता है. सबसे भीषण और दुखदाई यदि कोई स्थिति है तो वह यही है. कौन कब किस स्थिति में होगा, उसे कौन-कौन से दुख झेलने होंगे ?, आदमी इन्हें नहीं जानता, लेकिन इन हालातों से उसे कभी न कभी गुजरना ही होता है. बचने का कोई उपाय नहीं. आप कितनी ही शक्तिशाली औषधियों का इस्तेमाल कर लें, कितना ही फ़िट रहने की जुगाड़ कर लें, बचाव का कोई रास्ता नहीं है।

हाँ. सभी जानते हैं कि बचने के कोई रास्ते है ही नहीं. यदि ध्यान पूर्वक सोचा जाए तो अनेक ऎसे छोटे-छोटे उपायों को खोजा जा सकता है, जिसके अपनाने से कुछ राहत पायी जा सकती है. यदि उन उपायों को अपनाया जाए, तो निश्चित ही बुढ़ापा, जिसे हम एक आभिशाप समझ बैठे हैं, आसानी से काटा जा सकता है. सबसे पहले तो हमें अपनी आदतें बदलनी होगी ।

यदि आप शुरु से पेठू रहे हैं तो आपको उतना ही भोजन करना चाहिए, जो आसानी से पच सके. सुबह-शाम खुली प्रकृति में घूमने-टहलने की आदत बना लेनी चाहिए. ताजी हवा जहाँ आपको तरोताजा कर देती है, वहीं वह आपके फ़ेंफ़ड़ों को मजबूती प्रदान करती है. रक्त का संचरण ठीक तरह से होने लगेगा. एकाकी बने रहने की आदत को तिलांजलि दे दी जानी चाहिए. आप ऎसे मित्रों के बीच उठिए-बैठिए जो ऊर्जावान है, गतिशील है, ठोस और सही निर्णय लेने में सक्षम हैं, जिनकी सकारात्मक सोच हो, उनका साथ पकडिए. नकारात्मक सोच वालों से दूरी बना कर रखिए ।

हम मनुष्य जाति पर परम पिता परमेश्वर की बड़ी असीम कृपा है कि उसने हमारे शरीर में कुछ अतिरिक्त अंग दे रखे हैं. मसलन- दो दिमाक, दो आँखे, दो कान, दो नथुने, दो लंग्स, पेट में दो आँतें, दो किडनी, दो पैर आदि. मतलब एकदम स्पष्ट है कि यदि एक अंग किसी कारणवश खराब हो जाए, तो दूसरे अंग से वह काम चलता रहेगा. अब यह हम पर निर्भर है कि हम उन्हें किस तरह तंदुरुस्त बनाए रखते हैं।

चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक “लाओत्से” जिसने “ताओ” धर्म का प्रतिपादन किया है, वह इशारों- इशारों में काफ़ी कुछ रहस्यमय बातों के माध्यम से मनुष्य को चेताते रहते हैं. एक जगह उन्होंने शरीर को कंप्युटर से तुलना करते हुए कहा कि आदमी का दिमाक भी किसी कम्प्युटर से कम नहीं है।

हम उसमें अनेकानेक नेगेटिव विचार डाल देते हैं, जो अपना काम बखुबी करते रहते हैं और उसी के अनुसार परिणाम भी देते रहते हैं. यदि आपने उसमें पाजिटिव विचार डाल दिए हों तो तदानुसार अपना काम करते रहते हैं और आपको हरदम अतिरिक्त ऊर्जा से भर देते हैं. वे आगे कहते हैं कि हमें समय-समय पर प्रोग्रामिंग करते रहना चाहिए ।

नेगेटिव विचारों को हटाते रहना चाहिए. एक बड़ा सूत्र वे हमें दे गए हैं. और भी कई ऎसी बातें वे संकेतों में कह गए हैं जो हमारे काम की हैं, अतः उस पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, ताकि हमारे ऊर्जा और शक्ति बनी रहे और शरीर स्वस्थ बना रहे।

यह आपसे नहीं हो सकेगा क्योंकि आपने अपने बाल्यावस्था में अथवा युवावस्था में कभी इन्हें छूने की जरुरत ही नहीं समझी. यह आपकी आदत का कभी हिस्सा ही नहीं रहा..लेकिन अब समय ही समय है आपके पास. ऎसा पढें कि आँखों के सामने सारा दृष्य चलायमान हो उठे. सदा प्रसन्न बने रहने की चेष्टा करें. खुश रहें और दूसरों को भी खूश रखें. दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहें।

अच्छे मित्र और अच्छी किताबों से जुड़ें, जो आपको खुश रहने के रास्ते तलाशने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं. देशाटन की आदत बनाएं. जिन्दगी भर तो आप दौड़-धूप करते रहे. कभी घर से बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला. यह वह समय होता है जब आपके बेटा-बेटी की शादियां हो चुकी होती है ।

आप पर घर की कोई जिम्मेदारी बचती नहीं है. एक बार बैठकर प्लान बना लीजिए और निकल पड़िए घर से. आपके नजरों के सामने नया संसार होगा. नए-नए लोग होंगे, नयी-नयी बातें सुनने को मिलेगीं. साथ तलाशने की जरुरत नहीं. आपकी पत्नि से बढ़्कर और कौन साथी हो सकता है? उन्हें भी बाहर की दुनिया दिखाइए. जेब मजबूत हो तो विश्व-भ्रमण पर निकल जाइए।

हम भारतवासी अन्य देशों की तुलना में बड़े भाग्यशाली है कि उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक अनेकानेक तीर्थ स्थल स्थापित हैं. आप अपने बजट के अनुसार यात्रा का ड्राफ़्ट तैयार कीजिए और घर से निकल पड़िए. फ़िर भारत सरकार ने वृद्धावस्था वालों के लिए रेल भाड़े में काफ़ी छूट दे रखी है, उसका फ़ायदा उठाइए. रेल्वे ने पूरे देश को अनेक जोनों में बांट रखा है. सुविधानुसार आप अपनी यात्रा कर सकते हैं।

इसके अलावा केन्द्रीय योजना के अंतर्गत कुछ प्रमुख तीर्थस्थलों के लिए “भारत दर्शन” नामक स्पेशल ट्रेन भी चलाई जा रही हैं, जो एक स्टेशन से रवाना होकर आपको उसी स्टेशन तक छोड़ देती है. किराया के नाम पर काफ़ी कम रकम में कई स्थानों का भ्रमण आप कर सकते हैं. इन स्पेशल ट्रेनों में किराये की रकम में ही सुबह की चाय-नाश्ता, दोपहर और शाम का भोजन दिया जाता है. तीर्थ-स्थल तक जाने-आने के लिए लक्जरी बसों की उत्तम व्यवस्था भी इसी में शामिल है।

मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्य मंत्री माननीय श्री शिवराज चौहान जी ने वृद्ध लोगों के लिए निःशुल्क रेल यात्रा का प्रबंध कर रखा है. अब तक लाखों लोगों ने इसका फ़ायदा उठाया है. आप भी इस योजना का फ़ायदा उठा सकते हैं. अगर आपके परिवार में कोई ऎसा सदस्य नहीं है जो आपकी यात्रा में सहयात्री बन सकता है, तो विकल्प के रूप में आप किसी मित्र अथवा सगे-संबंधी को अपना सहायक बनाकर यात्रा कर सकते हैं।

विधाता ने प्रकृति को इतनी सुघड़ता और सुन्दरता से गढ़ा है कि आपकी आँखें खुली रह जाएगी. आप चमत्कृत हो उठेंगे. हर समय, हर क्षण कुछ नया करने की सोचें. यह विचार मन में न लायें कि अपने से कम उम्र के लोगों से कुछ जानने, पूछने में आपकी बेइज्जती हो जाएगी. इस नकारात्मक सोच को तुरंत ही झटक दीजिए. हो सके तो आप कंप्युटर से अथवा ऎंड्राइड फ़ोन से जुड़ जाइए।

एक क्लिक करते ही पूरा विश्व आपके सामने उपस्थित हो जाएगा. आप अपनी मन मर्जी से हर छॊटी-बड़ी जानकारियों के अलावा काफ़ी कुछ हासिल कर सकते हैं. मन के अंधकारमय बंद कमरों में लगी खिड़कियों को खोलिए और नित नूतन पुनर्नवा होती दुनिया को नयी नजर से देखिए. बुढ़ापा आएगा, उसे कोई नहीं रोक सकता. रोका भी नहीं जा सकता ।

बस खुश और प्रसन्न रहने का एकमात्र उपाय यही है और यह सोच में भी बना रहना चाहिए कि आप मन-मस्तिस्क से हमेशा सक्रीय बने रहें।आप खुद महसूस करेंगे कि आपसे सुखी और प्रसन्न कोई नहीं हो सकता। हर इंसान को बुढ़ापे में संगीत मनोरंजन के साधन , गीत,भजन , आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना, खूब हंसी माजक करना ये दवा है रोगी को ठीक कर सकता है। नृत्य करना, बच्चों के साथ ज्यादातर समय बिताना, चलना,योग करना,आदि।

बीएल भूरा

भाबरा जिला अलीराजपुर मध्यप्रदेश

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