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आदिवासी महिला बनी आईएएस अफसर, घर खर्च चलाने के लिए पिता बेचते थे तीर धनुष

IAS Sreedhanya ki safalta ki kahani
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जैसे की हम सभी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि जीवन में कुछ कर दिखाने के लिए संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि आत्मविश्वास और मन में हौसले की आवश्यकता होती है।

आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने वाले हैं जिसके पिता पर खर्च चलाने के लिए तीर धनुष बेचा करते थे परंतु आज उनकी ही आदिवासी बेटी आईएएस अफसर बन गई है ।

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जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि केरल का एक खूबसूरत जिला है वायनाड , 28 जिले के सांसद कांग्रेस नेता राहुल गांधी हैं ।

इस जिले में ग्रामीण आबादी काफी अधिक है साथ ही साथ आसपास में प्रकृति और वातावरण अपनी सुंदरता बिखेरते हैं , केवल इतना ही नहीं इस जिले को आदिवासी जिला माना जाता है यहां पर कई आदिवासी रहते हैं जो कई प्रकार के छोटे-छोटे व्यवसाय को करके अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं ।

आज हम आपको ऐसी बेटी की कहानी बताने वाले हैं जो आदिवासी इलाके से आती है जिसने अपनी मेहनत और बखूबी के बल पर अपने माता-पिता का सर पूर्ण रूप से ऊंचा करके दिखाया है ।

हम बात कर रहे हैं वायनाड आदिवासी जिले की रहने वाली श्रीधन्या सुरेश के बारे में , आदिवासी जिले में रहकर इस बेटी ने अपने पिता के साथ मिलकर कई मुश्किलों का सामना करके बुलंदियों को छुआ है ।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दे कि श्रीधन्या सुरेश कुरूचिया समुदाय से तालुकात रखती हैं ।श्रीधन्या सुरेश अपनी मेहनत के बल पर आईएएस बनने के बाद अपने इलाके में पहली महिला अफसर बनने का गौरव काफी अधिक महसूस करती हैं। श्रीधन्या बताती है कि उनके पिता दैनिक मजदूरी करते अर्थात आसपास के बाजारों में तीर धनुष बेचा करते थे ।

श्रीधन्या बताती हैं कि बचपन से ही उनके पास पढ़ाई के जरूरी संसाधन पर्याप्त नहीं थे और साथ ही साथ वह तीन भाई-बहन थे अर्थात् परिवार का पूरा खर्च मनरेगा स्कीम पर पूर्ण रूप से निर्भर था ।

श्रीधन्या बताती है कि कई मुश्किलें होने के बावजूद भी उन्होंने पढ़ाई से कभी समझौता नहीं किया, अर्थात उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और जूलॉजी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की है ।

खबरों से पता चला है श्रीधन्या मैं अपनी आगे की पढ़ाई कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पूरी की है अर्थात इसके बाद उन्होंने Kerala Scheduled Tribes Development Department मैं बतौर क्लर्क का काम किया , इसके बाद उन्होंने एक आदिवासी हॉस्टल में वार्डन कभी काम किया था।

इसके कुछ समय बाद ही श्रीधन्या  सिविल सेवा परीक्षा में जाने के लिए प्रेरित हुई इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में बैठने का निश्चय किया और इसकी तैयारी के लिए उन्होंने तिरुवंतपुरम में कोचिंग क्लासेस करने के लिए चली गई ।

इसके बाद श्रीधन्या का चयन साक्षरता के लिए हो गया था इन्होंने साक्षरता प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाना पड़ा परंतु इनके पास जाने के लिए पैसे नहीं थे इसके बाद उन्होंने दोस्तों से मदद लेकर 40000 इकट्ठा किया और उसके बाद वह प्रदर्शन के लिए दिल्ली गई । अर्थात साक्षरता प्रदर्शन के बाद इनका चुनाव हो गया और यह आदिवासी आईएएस महिला अफसर बन गई ।

 

लेखिका : अमरजीत कौर

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