आ गया है नव वर्ष का दिन जो और दिनों से भिन्न होता हैं । सदैव परस्पर शुभकामनाओं का ताँता लगा ही रहता है । यह चालु हुआ सिलसिला कई दिनों तक नहीं थमता हैं ।
हाल ही में मेरे एक परिचित ने मुझे कुछ विचित्र सी अग्रिम बधाई भेजी है । और कहा है नये साल की बहुत-बहुत शुभकामनाएं है । तुम्हारे सारे दुःख हों उतने ही अस्थायी जितने हों तुम्हारे नये साल के संकल्प और वादे कभी कुछ कम कभी कुछ ज्यादे।
कितना बड़ा इसमें व्यंग्य छिपा हैं । क्योंकि इस व्यंग्य में जीवन का बहुत बड़ा कटु सत्य जो समाया हुआ हैं ।मैं पानी पानी हो गया यह जानकर और जवाब देते मेरे से नहीं बन रहा है ।
मैं सोच रहा हूँ मेरी ही नहीं अधिकांश की यही जीवन्त कहानी हैं । सही में बात है जीवन गाँठ बाँधने जैसी ताकि आगे जो भी , जीतने भी , जहाँ कही आदि किये जायें वादे संख्या उनकी चाहे कम हो पर सही में निभाने के हों हमारे पक्के इरादे।
कुछ पंक्तियाँ भोर पर छाई है सुंदर सी केसर की सी लालिमा । किसी खिलते हुए कुसुम की तारिणा।किसी वराह की सृष्टि का गोचर । आया नव वर्ष आनन्द उल्लास लेकर । नव पल्लव पर रवि का प्रथम उत्कार ।
मानो मिला धरा को जैसे सुख स्वीकार ।कोकिल -कोठी की सी प्रथम वाणी का स्वर । आया नव वर्ष आनन्द उल्लास लेकर । जैसे मेघ आश्रुत से हुआ धरा शृंगार । पूर्ण चंद्र पर लायी चंद्रिका अपनी अनोखी निखार ।
बह मधुशीर्य दे रही निज वर को । आया नव वर्ष आनन्द उल्लास लेकर ।इसके साथ ही 2024 के नये साल की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ। नव वर्ष में भौतिक सुख सम्पदा के साथ साथ आध्यात्मिकता भी हो वर्धमान ये ही मेरी मंगलभावनाएँ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)