बात तो है कुछ छोटी-छोटी लेकिन उन बातों का सार सागर की तरह है और उनके सामने लम्बी-चौड़ी बातें निस्सार हैं । उस व्यक्ति की उम्र का कोई महत्व नहीं है जो वर्षो को आंकड़े की तरह जीता है ।
आंकड़ा चाहे कुछ भी हो, असली उम्र है मन में ऊर्जा और उतसाह कितना है। इस पैमाने से एक उम्रदराज भी युवा से भी युवा हो सकता है । इतना उत्साही कि उम्र पर गौर ही नहीं करता है।
मेरी उम्र का आखिरी दिन भी जो सूरज उगेगा वह भी मुझसे वैसी ही उम्मीद रखेगा, जैसी उम्र के पहले दिन रखी थी। यह बात वह दृढ़ विश्वास के साथ कहता है। उम्र को उम्र की नज़र से नही , वरन् सकारात्मक दृष्टि से देखें , हौसलों और जज़्बों से परखें ।बस मन में उमंग का दरिया बहते रहना चाहिए , कुछ कर गुजरने का सैलाब उमड़ते रहना चाहिए ।
फिर आयु का बढ़ना अभिशाप नहीं ,वरदान है , अपने समय को ; तजुर्बों के सदुपयोग से समृद्ध करने का नाम है ।इस तरह हर पल उम्र हमारी सोच में सही से रचनात्मकता को जीवंत रखता है । आज वैज्ञानिक यह कह रहे है की चाँद पर मनुष्य भेजेंगे ।विश्व में अपना और अपने देश का डंका बजायेंगें ।
इस तरह जब भौतिक चकाचौंध में मनुष्य इस तरीक़े से लिप्त है तब छौड़ना , देना , त्यागना आदि कठिन हैं । जब घरों में मैं रुपी अहंकार आदि ने इतनी गहरी जड़े जमा ली । परिवारों की छतों एवं निवों की बुनियाद हिला एवं उखाड़ ली ।
वर्तमान में जब सब कुछ जानते बुझते ही मनुष्य जानबूझकर इसमें धँसता चला जा रहा हैं तब छौड़ना , त्यागना , देना आदि असंभव सा दिख रहा हैं। जब पिता पुत्र की एवं परिवार में राग- द्वेष आदिवजहसे नहींबनती हैं ।
परिवार की सोच में एकाकीपन की सोच इतनी मज़बूतजमती हैं । वर्तमान परिदृश्य में सबकुछ जानते बुझते मनुष्य अपने मे ही इतना डुबता चला जा रहा हैं। तब छौड़ना,त्यागना , देना आदि दूर दुर दिखता हैं ।
जब हित साधने के लिए षड्यंत्र कर सत्य को दुर करना आसान हैं । सत्य सामने आता तब तक दुनिया में झूठ फैला देना आसान हैं ।जब काल का या सोच का इतना प्रभाव हावी हो तब छौड़ना , देना, त्यागना आदि लोहे के चने चबाने जैसा है।
चंद वो विरले ही होते है मनुष्य (पाँच महाव्रत धारी साधु, सन्त आदि ) जो अपने लिए नहीं जीते बल्कि दूसरों के लिए जीते हैं। विरले हीं होते हैं जों साधु , सन्तो आदि कीं वाणी को हरदयांगन कर लेतेहैं ओर दान ,त्याग आदि में आगे बढ़ जीते हैं।
तभी तो साधु , संतो के द्वारा कहा गया है कीं माया के ओ पुजारी तुझको क्या ख़बर हैं । इस घर के आगे दूसरा भी घर हैं । इस बात का सार यही है की हम इतनी ऊँचाई पर भी न पहुँच जाए कि जहाँ से हमको माता-पिता व परिवार नजर ही न आए। इस तरह छोटी – छोटी बातें जीवन के लिये कितनी सारगर्भित हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)