कई बार लोग साधारण परिवार से संबंध रखते हैं उसके बाद अपनी मेहनत मेहनत और कोशिशों के दम पर करोड़ों का बिजनेस खड़ा कर लेते हैं साधारण परिवार में जन्म लेने का यह मतलब नहीं हुआ सारी जिंदगी गरीबी और अभाव का सामना करके जिंदगी जी जाये।
भाग्य बदलने की ताकत हर इंसान के अपने ही हाथों में होती है, बशर्ते कि दृढ़ संकल्प और कभी न हार मानने वाली इरादे के साथ यदि जिंदगी में आगे बढ़ जाता है तब सफलता जरूर मिलती है।
आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। आज की कहानी है इंदौर के रहने वाली है अनूप जिंदल की, जिन्होंने अपने मेहनत के दम पर आज 200 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी है।
यह कहानी बताती है कि यदि अपने आइडिया पर दृढ़ विश्वास करके उस पर काम किया जाए तो जिंदगी आपको फर्श से अर्श तक पहुंचा सकती है।
अनूप ने अग्रवाल ब्रांड के 420 के बैनर तले पापड़, नमकीन, मसाला, बेकरी, मिठाई जैसे उत्पादों को आज घर-घर तक पहुंचा रहे हैं। आज करोडो घरों में इनके सामानों की पहुंच है।
हालांकि उनका यह काम एक पारिवारिक व्यवसाय था जिसकी स्थापना हुकुमचंद अग्रवाल, कैलाश सिंघल और प्रकाश सिंघल ने मिलकर की थी।
लेकिन बदलते वक्त के साथ अगली पीढ़ी ने इसे एक छोटी सी दुकान और बाद में एक नामचीन ब्रांड के तौर पर स्थापित कर दिया है। 420 पापड़ को संभालने की बागडोर अनूप के हाथ में ही है।
उन्होंने 50 महिला पापड़ निर्माताओं के साथ मिलकर छोटे से स्तर से इस व्यवसाय की शुरुआत की थी और आज उनके साथ करीब 1500 महिलाएं और 600 अन्य कर्मचारी का एक विशाल साम्राज्य बन गया है और उनकी कंपनी का सालाना कारोबार करीब 200 करोड़ के पार होता है।
अनुप बताते हैं कि वह बचपन से ही बेहद नटखट थे और खिलौने को तोड़ने के लिए उत्सुक रहते थे। अनूप के पिता एक छोटे व्यवसाय ही थे। उन्होंने कई व्यवसाय में अपनी किस्मत आजमाई लेकिन वह जिंदगी भर संघर्ष ही करते रहे।
पिता को देखकर ही अनूप के अंदर भी उद्यमशीलता की भावना आ गई जो कि उन्हें अपने जिंदगी में आगे बढ़ने और एक लक्ष्य निर्धारित करने के लिए मदद की।
उनके घर की आर्थिक परिस्थितियां हमेशा अस्थिर ही रहती थी अनूप दसवीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाए और अपने एक रिश्तेदार के यहां काम करने लगे।
जहां पर उन्हें हर महीने ₹1500 मिला करते थे। इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वह पापड़ के उद्योग में अपनी किस्मत आजमा आएंगे और इंदौरवासियों के बीच मसालेदार और टेस्टी पापड़ का व्यवसाय सुरु किया।
उन्होंने बनाया इसकी शुरुआत उन्होंने 1962 में की थी। लेकिन कंपनी ज्यादा तरक्की नहीं कर पा रही थी और हर महीने में केवल 50 से 100 किलो पापड़ी ही बन पाते थे। फिर अनूप ने इसमें कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन लाये, जिससे व्यापार अचानक बढ़ने लगा।
उन्होंने मोमबत्ती हीटर की जगह इलेक्ट्रॉनिक हीटर से पैकेजिंग करने की शुरुआत की। इसके अलावा एक प्रतियोगिता ब्रांड पराग पापड़ से प्रेरित होकर कुछ काम किये। उन्होंने देखा कि प्रतियोगी हर महीने 1000 किलो तक अपने पापड़ का उत्पाद कर रहा है।
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तब उन्होंने खुद से ही कहा कि हम भी ऐसा क्यो नहीं कर सकते हैं और वह अपने उत्पाद को बढ़ाने के लिए दिन रात काम करने लगे।
कुछ ही महीनों में उनके यहाँ भी एक महीने में 1000 किलो पापड़ बनने और बिकने लगे। साथ ही इसके लिए उन्होंने अपने सप्लाई चैन को मजबूत करने की दिशा में भी काफी काम किया।
पापड़ में कामयाबी के बाद उन्होंने नमकीन इंडस्ट्री में कदम रख दिया। हालांकि इस क्षेत्र में कई सारी घरेलू और विदेशी ब्रांड पहले से ही थे। लेकिन साल 2015 में उन्होंने अपने 420 ब्रांड बैनर के तले नमकीन बनाने का काम शुरू कर दिया।
शुरुआत में तो यह पूरी तरीके से असफल रहा। लेकिन असफलता से सफलता क्या रास्ता मिलता है। अनूप ने बेहतर गुणवत्ता के साथ अपनी नमकीन उत्पादक हो एक बार फिर से लांच किया और अपनी बिक्री पर ध्यान दिए। वह बड़े पैमाने पर हिट हो गये।
आज लगभग 15 टन नमकीन का उत्पादन होता है और वह इस क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है। इसके बाद उन्होंने हाल में ही कुकीज जैसे बेकरी उत्पाद भी लांच कर दिया है और यह बहुत जल्दी ही बाजार में फेमस हो गये।
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जब इसकी सफलता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम सब उत्तम गुणवत्ता वाले पदार्थों का उपयोग करते हैं। हम किसी भी परिस्थिति में उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता नहीं करते हैं और यही वजह है कि हम सफल है।
आज 420 ब्रांड न सिर्फ इंदौर पूरे मध्यप्रदेश का एक उभरता हुआ ब्रांड है। अभी हाल में ही उन्होंने इसकी एक डिस्ट्रीब्यूटर यूनिट मुंबई में भी स्थापित की है जिससे सकारात्मक नतीजे मिल रहे हैं। अनूप का लक्ष्य की वह अपने उत्पाद की पहुंच भारत के कोने-कोने तक पहुंचाये।
अनूप की कहानी से हमें प्रेरणा मिलती है कि मेहनत कभी भी बेकार नहीं जाती है। लक्ष्य बनाकर कोई भी योजना बनाई जाती है तब उसमें सफलता की गुंजाइश रहती है। लेकिन हमेशा अपने लक्ष्य को यथार्थवादी बनाएं जिस पर काम लगातार करना संभव हो, तभी अपनी मंजिल को पाया जा सकता है।
अनूप ने यह साबित करके दिखा दिया कि मेहनत करने वाले को कामयाबी मिल के रहती है बस जरूरत होती है दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ अपने रास्ते पर आगे बढ़ा जाये।