आज के समय में हम क्या कर रहे है इसका सही से आँकलन हमको है ही नहीं क्योंकि हम और – और के इस भँवर जाल में धँसते जा रहे है । प्राय: यहाँ हर कोई तनाव के तले दबे जा रहा है । सोने को नींद की गोलियाँ खा रहा है।
जिंदगी की भाग दौड़ में वह भगवान को भूले जा रहा है। भूल गया है कि यह जन्म मिला है आगे का भव सुधारने को न कि यूँ ही व्यर्थ गँवाने को।
क्या कोई गारंटी लेता है कि अगला पल उसका है। कोई भी नहीं फिर भी इंसान भविष्य की कल्पना संजो कर अपना वर्तमान का सुख खो देता है।
समय बहुत कपटी होता है, कौन सा क्षण अंतिम होगा, हम्हें नहीं मालूम पर भविष्य के सपने उसकी आँखों पर पट्टी ओढ़ा देते हैं। आप निश्चित होकर मान लो कि जो होना है वो होकर रहेगा तो फिर भविष्य की चिंता क्यों ?
इसलिये जीवन का सारांश यही है कि जो वर्तमान में ज़िना सीख लिया उसने जीवन का सार समझ लिया। इसलिये कल की चिंता छोड़ो और वर्तमान का आनंद लो। धर्म, आराधना और सत्संग आदि से जुड़ना चाहिए।
जीवन का सूरज ढलने से पहले, फूल मुरझाने से पहले, दीपक बुझने से पहले, अंधेरा होने से पहले, व्यक्ति को अपना जीवन समझ लेना चाहिए । वर्तमान मे जीने का अभ्यास बढाते जायें। भूतकाल के चिन्तन में हम समय नही गंवाये।
प्रतिक्रिया के घावों से निज को बचाएं हम। मन को शांत बनाए हम। बीती ताहि बिसार दे तभी तो मन शांत बन सकें। उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ सके।
आधि, उपाधि व व्याधि का सब भार मिटा सकें। सकरात्मक सोच और आत्मविश्वास के साथ तभी आगे बढ सकें। जब बीती ताहि बिसार दें। आगे की सुध ले। अब तो हो जा सचेत।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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