जीवन में तरक्की, उन्नति और विकास आदि के लिये सर्वप्रथम हम नजरअंदाज करने का प्रयास करे । स्वस्थ तन मन के लिये शरीर के लिये पोषक आहार ले। स्वस्थ चिन्तन को जीवन की चर्या में ले व अनावश्यक कुछ भी बात चिन्तन को छोड़ समय के अनुसार चलते जाये नहीं तो संसार की इस दौड़ में हम पिछड़ जाएँगे।
सबसे बड़ी बात यह है की हम इस चिन्तन में नहीं जाये और सोचे की दुनिया क्या कहेगी हमारे चिन्तन में जो अच्छा और उचित लगे वह हम हमारे समझ विवेक करते जाये।
जीवन में विकास व प्रसन्नता का सबसे सफलतम तरीका असल में पुण्योदय से जो हमें प्राप्त हुआ , हम उसमें संतुष्ट रहें, इससे हमारा आत्मकल्याण निश्चित है।
अतृप्ति दुःख का मूल कारण है, एक आदमी फटेहाल में भी खुश रह सकता है इस चिंतन से कि मेरे को पंचेन्द्रिय मनुष्यजन्म मिला है ,ये मेरा अहोभाग्य है और एक दूसरा इसके विपरीत दूसरे पर मेरे से ज्यादा क्यों?
के चिंतन में प्रसन्नता को भंगकर कुढ़ता रहता है अंदर ही अंदर और अपर्याप्त के पीछे भागता रहता है और अपना बहु कीमती मानुष जन्म गंवा देता है तो हम हमेशा पुण्योदय से प्राप्त में संतुष्ट रहते हुए प्रसन्न रहें जो स्वास्थ्य का भी मूलमंत्र है और विकास की ओर अग्रसर होने का भी।
हमें अपने अनंत शक्तिमय और आनन्दमय स्वरूप को पहचानना चाहिए तथा आत्मविश्वास और उल्लास की ज्योति प्रज्ज्वलित करनी चाहिए, इसी से जीवन विकास के वास्तविक सुख का साक्षात्कार संभव है। इस तरह हमारा जीवन सम्भावनओ का स्रोत है और भी कतिपय बिन्दु हो सकते है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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