सुखी कौन यह प्रश्न आते है कही चिन्तन आ जाते है जबकि सही से सुखी मेरे चिन्तन से वह है जिसके घर का माहौल सही हो । सुख बहुत दुर्लभ और अनमोल हैं ।
कितना भी आरामदायक सुन्दर घर हो हमारे पास ,अच्छी कीमती गाड़ी हो, अच्छा सही से कारोबार आदि भी हो तब भी क्या हम खुश और सुखी रह सकते हैं ? क्या इन सब चीजों की ऐसी कोई गारन्टी हैं ?
इसका उत्तर स्पष्ट हैं कि कोई गारन्टी नहीं हैं । हमारे घर का अगर माहौल अच्छा नहीं है तो इन सब साधनों का कोई मायने नहीं। हम क़तई सुखी नहीं हो सकते हैं ।
अगर हमारे बुजुर्ग मॉं-तात किसी कारण से अगर प्रसन्न मन नहीं हैं तो घर के वातावरण में आनन्द और अमन नहीं हो सकता हैं । अगर घर की लक्ष्मी खाना उदास मन से बनाती है तो उस घर में आनन्द और खुशी का चमन खिल ही नहीं सकता है ।
हो यदि किसी भी प्रकार का गृहक्लेश तो उस घर में सुख-शान्ति का प्रवेश कभी भी नहीं हो सकता हैं । धन दौलत और वैभव से ही सुख शांति मिलती तो पैसे वाले लोग नींद की गोली लेकर नहीं सोते। उबली हुयी सब्ज़ी नहीं खाते।
हर समय डर के माहौल में नहीं जीते। जहां प्रेम, शांति, सहयोग, पवित्रता, आध्यात्मिकता, आर्थिक संपन्नता हो तो वह घर स्वर्ग तुल्य है । जिसमें दुःख, अशांति, लड़ाई- झगड़ा हो तो वह घर नरक तुल्य होता है ।
परिवार में आपस में प्रेम और सहानुभूति के अतिरिक्त कर्तव्य परायणता और अनुशासन का बसेरा जरूरी है। मर्यादा और विवेक, सत्य और परिवार के प्रति रुझान जरूरी है।
थोड़ी-थोड़ी बचत करके धन जमा करना जरूरी है जो आवश्यकता के समय काम आ सकें। जितनी चादर है उतनी ही फैलानी चाहिए अर्थात आमदनी से ज्यादा खर्च नहीं करना चाहिए ।
छोटो से प्रेम बड़ों का आदर करना चाहिए, अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाना चाहिए। यह सब देखकर बच्चों में भी अच्छे संस्कार अपने आप आएंगे है, चाहें वे कहीं भी रह रहे हो।
ईंट,चूने, पत्थर से जिसका निर्माण होता है उसे घर नहीं मकान कहते हैं, जिस मकान में पत्नी बच्चे और पतिदेव रहते हैं उसे घर कहते हैं ,पर जिस घर में माता-पिता भाई-बहन आदि सब प्रेम से साथ में रहते हैं उसे ही परिवार कहते हैं वही स्वर्ग सा प्यारा घर परिवार सबसे न्यारा होता है इसलिये हम कह सकते है कि सुख-शान्ति के लिए घर अच्छा, आलीशान हो न हो पर घर का माहौल अच्छा जरुर होना चाहिए ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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