कभी-कभी एक छोटे से सवाल का ऐसा जवाब मिल जाता है कि दिल में ख़ुशी का भूचाल सा आ जाता है। मसलन पूछा किसी ने जब कण-कण में भगवान है तो मन्दिर जाने का क्या काम ?
इसका एकदम लाजवाब जवाब बहुत ही सुन्दर मिला कि हवा तो धूप में भी चलती है पर आनन्द तो छाँव में ही बैठ कर ही मिलता है |
ठीक इसी तरह मंदिर में जाने से हमको आनंद की अनुभूति होती है क्योंकि मंदिर का वातावरण हमको आत्मा में रमने का मौका प्रदान करता है और हर परिस्थिति में सम्भाव से रहने को प्रेरित करता है ।
मनुष्य के जीवन में पल-पल उतार चढ़ाव आते रहते हैं। कोई नकारात्मक बातें उनके बारे में बोल दें तो वो पचा नहीं पाते हैं । वे उनके बारे में सोच नेगेटिव रखने लगते हैं।
धीरे-धीरे इस सोच से मन की शांति भंग होने लगती है। यदि घर परिवार और मित्रों आदि की बातों को सकारात्मक सोच से हंसकर बातों को पचा लें तो वो लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं, नहीं तो निराशा की गर्त में फंस जाएंगे ।
सुख ,दुख , पैसा , हार, जीत , प्रशंसा, निंदा आदि आते जाते का नाम ही जीवन है , जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष है। समभाव से जिसने जीत लिया वही मन का राजा है। धैर्य , संयम , सकारात्मक सोच प्रतिकूलताओं के परिहार की सर्वोत्तम ओषधियां है।
इसलिये भगवान सर्वत्र हैं पर असली आनन्द तो मन्दिर में बैठ कर ही आता है जो शतप्रतिशत सही है । इस उत्तर का कोई प्रत्युत्तर नहीं क्योंकि यह जवाब शतप्रतिशत सही था ।
वैसे हमने बहुत ढूंढा भगवान को पूजा श्लोक और स्तुति आदि में लेकिन अंत में ईश्वर हमको मिला प्रेम, स्नेह , सेवा और सहानुभूति आदि में|
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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