प्रायः प्रायः हर मानव के चिन्तन में यह प्रश्न आता है कि कैसे मुझे स्वर्ग की राह मिले यह चिन्तन आना स्वभाविक भी है क्योंकि मानव अपने बुद्धि कौशल से सही का चिन्तन करता है । यह मार्ग इतना आसान भी नहीं है तो इतना मुश्किल भी नहीं है ।
इसके लिये हमे अपने दिमाग़ को शीतल रखना हैं , पल-पल में कभी उत्तेजित नहीं होना है , सात्विक कर्म करना हैं , जेब को थोड़ी गर्म रख परहितार्थ करना हैं , व्यवहारिक बनना हैं ,ऑंखों में दुनिया की शर्म को रखना हैं , दिल को दया का बसेरा बना लेना है , जबान से कभी न अप्रिय शब्द बोलना हैं , अपना प्रारब्ध हालात कैसे भी हों कभी न कोसना हैं , सांसारिक राह पर भी चलना पड़ेगा आदि – आदि इसके विपरीत दिशा में स्वर्ग की सीढ़ी तो क्या स्वर्ग की राह भी नहीं मिलेगी ।
निराकांक्षी होकर सरलता की राह पर चलना हरियाली की ख़ुशहाली लाता है। क्योंकि उसके लिए न ही रख-रखाव का तनाव है ,न ही परिग्रह की सोच , न ही चोरी का डर और न ही कलह-द्वेष का भय आदि है। है तो बस केवल मन: संतोष, एक सुकून भरा मानसिक तोष है ।
वैभव-विलास से दूर रहकर हम अपने-आपको समय दे सकते हैं । अपनी आत्मा के क़रीब जाकर स्वनिहित ज्ञान की परतें खोल सकते हैं । जिस ऊर्जा का अपव्यय व्यर्थ विषयों के आकर्षण में हो रहा था , हो रहा है , उसका व्यय नये ज्ञान को सीखने में कर सकते हैं ।
जिसने आशाओं-निराशाओं से परे हटकर ,अपने विवेक का उपयोग किया उसीने सदा अपने जीवन को सार्थक किया है । हमारे संत-महात्माओं के जीवन चरित्र इसके ज्वलंत उदाहरण हैं । इस तरह हम भी अपने जीवन को उच्च कर उनके जीवन का अनुकरण कर स्वर्ग पाने का तो पता नहीं पर स्वर्ग की राह तो जरूर पकड़ सकते है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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