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सत्-चित्त-आनन्द है परमानन्

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यदि किसी के पास स्वस्थ इन्द्रियाँ, स्वस्थ दिमाग और तंदुरुस्त शरीर आदि है तो वह मानव को प्रकृति प्रदत्त बेशकीमती खूबसूरत उपहार हैं । होम्योपैथी के जनक डॉ. सैम्युअल हैनिमेन ने एक बहुत सुन्दर बात कही हैं कि प्रकृति की इस बहुमूल्य भेंट का यदि मानव विवेकपूर्ण सदुपयोग जीवन में करे तो व्यक्ति सदा आनन्द के अतिरेक में जी सकता है ।

क्योंकि जीवन का मूल स्वभाव सच्चिदानंद ही है यानि सत्-चित्त और आनन्द। दीपक की बाती को ज्योतिर्मय बनना है तो उसको तेल में डूबे होना चाहिए , साथ ही साथ तेल से बाहर भी रहना चाहिए ।

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बाती यदि डूब जायेगी तो वह प्रकाशित नहीं रह पायेगी । ठीक इसी तरह हमारा जीवन भी दीपक की बाती के समान हैं जो संसार में रहते हुए भी हमको निष्प्रभावित करता है । हम यदि डूब गए तो अप्रकाशित रह जायेंगे ।

अतः सांसारिक कर्तव्य निभाते हुए भी हमको राग द्वेष से लिप्त नहीं होना है । आत्मा में ज्ञान का दीप जलाने की और हमको आगे अग्रसर होना हैं जिससे कर्मों का क्षय करते हुए दीपक के प्रकाश की तरह प्रकाशमान होते हुए आत्मा के चिर – परिचित लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति की और बढ़े एवं हम भी संसार से विरक्त होकर असीम आनन्द परमानन्द के पास पहुँचकर सिद्ध – बुद्ध बन जायें एवं भव सागर से पार हो जाये ।

यह सम्भव तभी हो पाएंगा जब हम संसार से विरक्त होकर परमानन्द और ज्ञान की ज्योति जलाते रहे क्योंकि हमारा लक्ष्य यही होगा कि भव सागर से नैया पार लगानी है । अतः हम सबका प्रयत्न यही रहे कि हमारे जीवन से सत्-चित्त-आनन्द कभी ओझल ही न हो ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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