हर मानव प्रायः प्रायः अपने जीवन को गुणात्मक बनाने में प्रयास करता रहता है । वैसे तो बहुत सी बातें हैं जिनके पालन करने से जीवन में गुणात्मक सौगातें मिल सकती हैं पर कुछेक ऐसी बातें हैं यदि जिन पर ध्यान दिया जाए तो हमारे मुख पर आनन्दमय मुस्कान बनी रह सकती है।
जैसे – सही काम नहीं है और हम उस कार्य में लगे है तो हमारे जीवन की गति अवरुद्ध होगी क्योंकि हम अपने जीवन रूपी नदी की धारा के विरुद्ध तैर रहे है जबकि इसमें खतरा है ।
बूँद-बूँद से घड़ा भरता है और उसी बूँद से नदी बनती है अगर इसकी गहराई में जाओ तो नदी हम्हें बहुत ही अच्छी सीख देती है जो अपना रास्ता स्वयं बनाती है, प्यासों की प्यास बुझाती है, अपने हृदय में अनेक जीव जंतुओं को पनाह देती है पर उसके बदले में कोई चाह नहीं और उसका पानी इतना निर्मल जैसे किसी महापुरुष का दिल हो।
इसीलिये भगवान भी उसमें वास करते हैं।वो निरंतर गतिमान रहती है जैसे आलस्य का वहाँ कोई बहाना ही ना हो।हम उसमें कितनी भी गंदगी डालें पर वो तो अपने सरल मन से हम्हें मीठा और शीतल जल ही प्रदान करती है फिर एक दिन समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व ही समाप्त कर लेती है।
इसलिये हर इंसान को भी नदी से सीख लेनी चाहिये कि चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति आये अडिग रहो,जीवन में छल कपट नहीं सरल बनो,कभी अच्छे क़ार्य करके नाम के पीछे मत भागो,हर समय पर हित की भावना रहे और मन इतना सरल हो जैसे एक छोटे बच्चे का।
कहते हैं कि बच्चे के दिल में भगवान का वास होता है क्योंकि उसका मन सरल होता है और जीवन में सत्कर्म करते करते इस दुनियाँ से विदा हो जाओ।
हम सबका जीवन यहाँ बेगाना है क्योंकि सबको एक दिन जाना है ।छोटा सा जीवन है फिर भी हर भौतिक वस्तु से हमारा मेरापन है ।
सचमुच कितना बड़ा मतिभ्रम है ।जिस दिन मिट्टी की काया मिट्टी में मिल जायेगी तो हर चीज़ यहीं रह जायेगी ना शोहरत कुछ कर पायेगी ना दौलत काम आयेगी ।
अहम्-दंभ, रूतबा-धन इन सबके पीछे हमारा मन कितना व्याकुल रहता है । इनमें अगर किंचित चोट भी आ जाए तो दिल अधीर-आकुल हो जाता है पर कितना भी हम मोह-माया कर लें सूई तक छोड़ कर हमको अगले भव जाना ही होगा और रिश्ते- नातों की दुनिया को तब अलविदा का हार पहनाना ही होगा क्योंकि मौत निश्चित है पर जीवन भी सीमित है ।
अतः हम धन-संपदा का नहीं जीवन में आध्यात्मिकता का वैभव जोड़ें , मोह-माया , राग-द्वेष आदि की काराओं को तोड़ें , बहिर्मुखी नहीं अंतर्मुखी बनें , संपत्ति की नहीं – अंतर की और प्रगति करें ।
वह आत्मा के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को साधें ममत्व के सारे बंधन निर्लिप्तता की डोर से बाँधें । पूरी दुनियां हमें प्यार करेगी अगर मासूम बच्चे सी मुस्कान हमारी सबके प्रति आँखों मे हो।
आसमान हमारे संग अपना स्वर सदैव मिलायेगा अगर उङने की चाहत हमारे पांखों मे हो और वादियों का नैसर्गिक सौंदर्य हमारी यादों का अमिट हिस्सा बन जाता है ।
मुश्किल कैसी भी हो वह निश्चित ही दम तोङ देगी अगर हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति सांसों मे हो। हर पल की हर बात मुझे खुशी देती है। गम हो या खुशी सदैव मुस्कान मेरा साथ देती हैं।
अब दुख- दर्द आदि सब मेरे पास अतिथि की तरह आते हैं, कुछ पहर ठहरते और वापस लौट जाते हैं। मैं भी पहले की तरह इन अतिथियों का आदर् सत्कार नहीं करता हूँ और न ही इन्हें देख आंखों में पानी भरता हूँ क्योंकि मुस्कान ने मुझे नए ढंग से जीना सिखा दिया है।
जीवन में सुकून और शांति को खोजना बता दिया है। उदासी और निराशा तो जैसे मेरे द्वारे आना ही भूल गई। क्योंकि मेरी मुस्कान ने होठों पर कड़क पहरा जो लगा दिया है।
तभी तो कहा हैं कि उदासी से सदा उदासी ही पैदा होती है और ख़ुशी से सदा ही खुशी फैलती हैं क्योंकि हमें यही हमारी खुशी ही चाहिए ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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