अंधकार से प्रकाश की और ले जाने का पर्व दीपावली हैं ।दीपोत्सव त्यौहार मन में खुशियाँ अपार लाता हैं । कोई मर्यादा पुरुषोत्तम के लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर यह पर्व मनाता हैं तो कोई भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति पर यह पर्व मनाता हैं ।
दोनों ही अवसर दो उच्च आत्माओं के प्रसंग से जुड़ें हैं ।इसीलिए दोनों ही मान्यता के लोग अपने -,अपने ढंग से बड़ी उमंग से यह त्यौहार मनाते हैं। जो भी हो दीपोत्सव मनाने की सार्थकता तभी है जब अंतर्मन में दीप प्रज्जवलित हों ।
दीपावली पर्व हमें बहुत प्रेरणा रूपी संदेश देता हैं कि – अमावस की काली रात के बाद उजालों की बरसात होती हैं , अँधेरी गहरी घाटियों को चीरकर ही पुण्य प्रकाश मिलता है, अंधकार के साम्राज्य को मिटाने के लिए बहुत से छोटे से दिये की चोटी सी बाती का आलोक हमे यह पर्व देता हैं ।
यह ज्योतिर्मय जीवन धारा-ज्योतिर्मय त्यौहार हैं , सारे क़षाय मिटाने- दिव्य प्रकाश फैलाने की स्फुरणा हमें यह पर्व प्रदान करता हैं , कर्मों का बंधन हटाने और चिन्मय बन जाने की और हमको पर्व अग्रसर करता हैं , विरह की धुँध को मिटाकर-मिलन के गीत गाने को पर्व हमको कहता हैं , संस्कृति की संगायक नारी-संस्कृति का स्पन्दन नारी का पाथेय हमें पर्व प्रदान करता हैं ,दीप से दीप जलकर – हर आँगन मुस्कान यहाँ पर्व में खिलता हैं , धर्म करने को आगे बढ़े -बने स्वयं-स्वयं का दीप आदि – आदि हमको दीपावली पर्व का संदेश मिलता हैं ।
दीपावली का दीप इसलिए वन्दनीय हैं क्योंकि वह दूसरों के लिए जलता है ,?दूसरों से नहीं जलता। यह अपने गले में तमस का गरल पीकर दूसरों का पथ आलोकित करता हैं । दीपावली पर्व पर दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए, क्योंकि दीया कहीं भी जले, उजाला देता है।
दीये का संदेश है- हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं जीवन की सार्थक दिशाएं खोज लेती हैं।
बाहरी प्रकाश के साथ – साथ में भीतर की तरह में भी ज्ञान की तरावट भी तो जरुरी है। श्री-ह्री-धी-धृति-अक्षय लक्ष्मी वर हमको दीपावली पर प्रदान हो जिससे नव भविष्य का नव अरुणोदय हमारा जले और आत्मा का “प्रदीप”हम प्राप्त करे । इन्ही शुभ भावों से शुभ दीपावली-समृद्ध दीपावली ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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