दुःख की बुनियादी वजह हमारा अज्ञान हैं क्योंकि प्रथमतः तो अज्ञान के कारण ही हम खुद को शरीर मानने की भूल करते हैं, फिर भौतिक सम्पति आदि को अपनी मान लेने का उसूल दूसरी गहन भूल हैं ।
जिस दिन किसी को यह ज्ञान हो जाता है कि हम शरीर नहीं, हम आत्मा अजर-अमर हैं व सम्पति आदि भौतिक पदार्थ सब नश्वर हैं । यह हमारा, वह तुम्हारा यह सब सारा मिथ्या भ्रम हैं ।
समझें उसी दिन से अज्ञान का पर्दा हट गया है और हमारा अन्तर्ज्ञान का पट खुल गया है फिर कभी शारिरिक व सांसारिक कारणों से दुःख और कष्ट नहीं होगा क्योंकि जीवन सुख-दुःख का चक्र है यही जीवन का सत्य है ।
अनुकूल समय में हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती, जब कभी हमारे समक्ष विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो हम कर्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं, ऐसे में स्वजन और मित्रगण संबल बनते हैं, समाधान खोजने में सहायता करते हैं तो राहत मिलती है ।
दुःख के प्रमुख कारण बाहरी परिस्थितियाँ,आसपास के व्यक्तियों का व्यवहार, महत्वाकांक्षाएँ एवं कामनाएँ आदि हैं ।जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितियों एवं समस्याओं के लिए कोई दूसरा व्यक्ति या भाग्य दोषी नहीं है उसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं ।
हमारे कर्मों और व्यवहार की वजह से ही परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति का व्यवहार हमारे व्यवहार को प्रभावित न करें अतः हम अपने स्वभाव के ही अनुकूल क्रिया करें ।
अतः हम सब गहन साधना व मंगल कामना आदि करे कि शीघ्र आए वह शुभ दिन और हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन जाए व मोक्ष की और हम अग्रसर हो ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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