भावना के ऊपर कहा गया है कि प्रमोद भावना का भी अपना एक स्वाद होता है, यह जब पैदा होती है तो हर विवाद खत्म होता है ।
जिंदगी के जंग में जो हीन भावना रखता है, वह जीवन की राह में बहुत जल्दी थकता है । मूलतः सबकी आत्म शक्ति एक समान होती है, कोई पैदा करता है घतूरा और कोई मोती उपजाता है ।
वह जिसका मजबूत व शक्तिशाली मनोबल होता है इसको सदा शानदार और सुनहरा कल नजर आता है । हमारे जीवन में भावना का महत्वपूर्ण स्थान होता है ।
हमारे जीवन में भावना से अच्छे- बुरे सभी तरह के व्यवहार होते है । कहते है जैसी हमारी भावना होती है वैसे ही हमारे विचार उत्पन्न होते है। भावना के इर्द- गिर्द ही हमारे जीवन का व्यवहार होता है ।
मुझे दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराजजी स्वामी ( श्रीडुंगरगढ़ ) बात के प्रसंग में बोलते थे कि प्रदीप जीवन अपना है इसे हमे सही से अच्छे कार्यो से रंगो में भरना है ।
हम किसी का अच्छा कर सके तो बहुत अच्छी बात है , हम नहीं कर सके तो कोई बात नहीं लेकिन हम किसी के प्रति राग- द्वेष का भाव क्यो पैदा करे उससे सदैव बचते रहे ।
हमारे प्रति सामने वाला अगर बुरा व्यवहार करे तो हमारे द्वारा बुरे की प्रतिक्रिया गलत से नहीं बल्कि सही व्यवहार रख कर दे हम उसको क्षमा करे । अतः बात का सार यही है की हमारी भावना कभी भी गलत हो ही नहीं ।
मुझे मुनिवर की ये शिक्षायें जीवन व्यवहार में सतत् सही दिशा प्रदान करती है । हम देखते है कि वैसे तो हर आम इंसान सुबह उठता है अपने परिवार का भरण पोषण करता है और ये जिंदगी यु ही बीतती चली जाती है ।
जब तक सोचता है खुद के लिए जीवन तमाम हो जाता है लेकिन किसी के लिए किया साथ नही आएगा, खुद के कर्म खुद की पुण्याई साथ जाएगी , इसलिए रोचक किस्सो से इस बुक के पन्नों को इंद्रधनुष के रंगों से इसे भर दो क्योकि ये फिसल जाएंगे बंद मुट्ठी से रेत की तरह पल।
हम अपनी कहानी लिखे, अपनी ही कलम से, शब्द भी हमारे, कहानी भी हमारी, लिखनी है हमे कैसी, वो मर्जी भी हमारी शर्त बस इतनी है, स्नेह , संवेदना और विश्वास की स्याही से सतकर्मों के शिलालेख सम शब्द लिखते जाए,सीमित समय में हर पात्र, हर चरित्र जीते जाए ।
हमारा मन मयूर प्रेम और कल्याण की भावना से भरपूर हो आनन्द ही आनन्द से वह नाच उठे । भावना के लिये कहा गया है कि संसार के सब जीवों के साथ हमारा मैत्री भाव हो ऐसा हमारा चिन्तन तत्व हो कि हम इन्हीं भावनाओं से जब कुछ किसी को देते हैं तो वह वस्तु आध्यात्मिक हो जाती है ।
हमारे अन्दर उसमें से एक निर्झर बहने लगता है वह दूसरों की प्यास बुझाने वाला शीतल प्रवाह हो जाते हैं। ऐसे देने में ही हमारे मन तृप्ति के भाव होता हैं न कि हमारी वाह,वाह ! कि चाहत हो । यही सही भावना से वास्तविक देना और देकर आनन्दित होना है ।
भावना में बिन्दु से सिन्धु बनाता जो, प्रभुता का मार्ग दिखाता जो ,हिम खंडो सम अविरल गलकर , तरूवर ज्यों फलता वो रहता है ।
छोटी-छोटी बातों पर भावना में बहकर जो प्रतिक्रिया करते है निश्चित ही उनका जीवन एक तमाशा सा बनकर ही रह जाता है। हर समय दिमाग गरम रखकर रहना यह जीवन को तमाशा बनाना है और दिमाग ठंडा रखना ही जीवन को तपस्या सा बनाना है।
हमारा जीवन सही भावना से ओत- प्रोत हो , बिन्दु से सिन्धु बनने की यात्रा में आगे बढ़ने हेतु विशेष उपयोगी बने और जो सदगुण हमारे में विद्यमान है वे प्रमोद भावना के साथ ही गुणग्राहकता और विनम्रता तथा श्रृद्धा भक्ति आदि सहज विशिष्टता दिलवाने वाले साबित हो।यही हमारे लियें काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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