भाग-2
अतः कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे में आवश्यक और अनावश्यक मे अंतर का उसकी पहचान का सही से विवेक हो , नही तो हम अनावश्यक को भी जैसे लडाई-झगड़ा, कलह-फसाद आदि – आदि को भी आवश्यक समझ बैठेगे फिर तो यह हैवान का काम होता है।
हम आवश्यक और अनावश्यक का सही से विश्लेषण करते हुए आवश्यक कार्य का खाता बढ़ाते जाए और हम अनावश्यक कार्यो की संख्या घटाते हुए इस दुर्लभ मनुष्य जीवन को सार्थक बनाए। वह जहाँ तक आवश्यकता है आकांक्षा नहीं है वहां उतना पाना तो लौकिक धर्म निभाने का संकल्प भी पूरा कर पाएंगे ।
वह सिर्फ दिखावा उससे ही मुंह मोड़ लें तो हम अनावश्यकता पर भरपूर नियंत्रण लगा पाएंगे।। हम लोकोत्तर धर्म की ओर कदम बढ़ा पाएंगे तो हमारी आकांक्षाएं स्वत: समाप्त होगी ।
वह हम महाव्रतों की सीढ़ी में अपरिग्रह को छू पहुंच पाएंगे तभी तो कहा है कि बातो की मिठास मन का भेद नही खोलती वह मोर को देख के कह पाओगे वह साँप खाता है । हम जीवन की घड़ियाँ नेक बनाये ,नए सृजन के दीप जलाये ।
वह बढ़े सदा पौरुष का स्पंदन रुके नही प्राणों की धड़कन। हम वृत्तियों का शोधन करे हमको यही अनुपम उद्दबोधन मिले। हम भौतिकवाद,अर्थ, पद, प्रतिष्ठा एवं सांसारिक आदि – आदि कार्य के चक्कर में हमेशा उलझें ही रहतें है और धर्म – ध्यान, तपस्या आदि की बात आये तों कल के भरोसे छोड़ देतें है ।
अतः हम समय में सें सही से नियमित समय निकालकर, आध्यात्मिकता की और अग्रसर होकर, नित्य त्याग, तपस्या, स्वाध्याय साधना आदि करतें हुवें इस दुर्लभतम मनुष्य जीवन का पूरा सार निकालते हुवें, अपने परम् धाम की और अग्रसर हों क्योंकि हमारा जीवन में केवल आजीविका का निर्वाहन करना ही जीवन नही हैं ।
अतः हम भौतिकवाद से ब्राह्य आनंद से बाहर निकलकर, आध्यात्मिक की और अग्रसर होकर, इस जीवन का पूरा सार निकालते हुए, इस दुर्लभतम मनुष्य जीवन को सार्थक करते हुए, हम अपने भीतर की चेतना को जाग्रत करते हुए, परम् आनंद को प्राप्त करते हुए, हम अपने परम् लक्ष्य की और अग्रसर हो। यही हमारे लिए काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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