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कल कल का चक्कर : Kal Kal ka Chakkar

कल कल का चक्कर
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कुछ प्रश्न तो जिंदगी के अबूझे, अनुत्तरित ही रह जाते है। सही गलत के चक्कर मे कुछ तो सुलझ ही नहीं पाते हैं। आज जो कर लिया वो तो हमारी अपनी धरोहर बन गयी पर कल का इन्तजार करने वालों के तो हाथ खाली ही रह जाते हैं।

हम प्रायः यह कह देते है कि मैं यह काम कल कर लूँगा और वह कल कब आता है कब जाता है हमे मालूम ही नहीं पड़ता हैं । वह कार्य को हम कर ही नहीं पाते हैं ।

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कहते हैं कि चक्रव्यूह को सही से समझे बिना उसका भेद करना संभव ही नहीं है ठीक इसी तरह बहुत कम लोग जानते है जीन्दगी का रहस्य जबकि हकीकत यही है।

जिन्होनें गुजार दी जिन्दगी सत्य जानते हुए भी मूर्छा में पछतावे की बात तो उन समझदार बेवकूफो के लिए है।

आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में, इंटरनेट के रंगीन सपनों में,दिन-रात हम भाग रहे माया के चक्कर में, प्रकृति का दोहन कर रहे अंधी दौड़ में ,फंसकर इन मोह- माया के जाल आदि – आदि में जिससे सुख- शांति और संस्कृति जीवन में हम भूल गए हैं ।

भौतिकवाद, अर्थ, पद, प्रतिष्ठा एवं सांसारिक आदि के चक्कर में हम हमेशा उलझें ही रहतें है और धर्म – ध्यान, तपस्या आदि की बात आये तों हम कल के भरोसे छोड़ देतें है ।

यूं ही बीत जाएगा जीवन और और के चक्कर में कुछ भी ना रह जाएगा जीवन के अंतिम पड़ाव में क्योंकि जाएंगे तो केवल अच्छे बुरे किये हुए कर्म साथ में।

अतः हम समय में से समय निकालकर, आध्यात्मिक की और अग्रसर होकर, नित्य त्याग, तपस्या, स्वाध्याय साधना आदि करतें हुवें इस दुर्लभतम मनुष्य जीवन का पूरा सार निकालते हुवें अपने परम् धाम की और अग्रसर हों।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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