चाहे बच्चा हो या पौधा अतिलाड प्यार व परवरिश से् वे तकलीफों को सहना नहीं जानते ।हक्के बक्के रह जाते हैं । अतः हम उनको हमेशा सहनशील संस्कारी बनायें ताकि जीवन में वह हरेक स्थिति में जीना सीख जाएं ।
नारी का, अनुराग है, कोमल, पर रहता दृढ़, होता नहीं भिन्न ,किसी पर अर्पित होती है, तो उस पर मिट जाती, रहती अभिन्न। नारी धैर्य ,ममता एवं अनेक सद्गुणों की खान होती है।पुरुष एक परिवार को आलोकित करता है,वहीं नारी दो-दो परिवारों का दायित्व संभालती है।
पुरुष काम करके थककर आया कह देते हैं,लेकिन महिला अनवरत 24 घण्टे,365 दिन बिना किसी अवकाश हरदम अपने दायित्व का निर्वाह करती है।
नारी के त्याग को तोला जा सके, ऐसी तुला आज तक कोई बना नहीं सका है।उस जैसी ममता,सेवा,समर्पण की दिव्य मशाल कोई जला नहीं सका है। वह सृजनकी,संवर्धन की सही से अनमोल अनुपम अद्वितीय,धरोहर है।
उसके नैसर्गिक सौंदर्य की सौम्य मूरत आज तक कोई बना नहीं सका है। नारी के लिए कहा जाता है कि जननी सदैव से कल्याणी थी,है और हमेशा रहेगी। नारी और नर दोनों गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं,दोनों की अपनी अहमियत है ,एक दूसरे के पूरक है,दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
आज नारी ने जितनी भी प्रगति की है उन सबके पीछे प्रेरणा और श्रम पुरुषों का सदैव रहा है ,उसको नजरअंदाज कर महिला आगे नहीं बढ़ पाती, पुरुष भी औरत की तरह कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं और अहसास भी नहीं होने देते।
वैसे हमें लिंग तो जो भी मिलता है अपने कर्मों के अनुरूप मिलता है।वैसे सरलता से पुरुष रूप और छलना,प्रवंचना से स्त्री रूप मिलता है,ये भी आगम की वाणी है और स्त्री चाहे जितना कुछ कर जाएं,लेकिन स्वाभाविक ही वो चतुर्दश पूर्वधर व आहारक शरीर के अयोग्य अपने आपको पाती है,ये शाश्वत सत्य है।
अतः हम अपने अंदर गुणों का विकास करते जाएं निरन्तर,कभी अभिमान स्वयं में न आने दें।नारी जननी है तो पुरुष उसके मूल में है यही यथार्थ है । नारी और नर का जोड़ा है,जो दोनों को पूर्णता प्रदान करता है।नारी शक्ति व नर शक्ति , भगवती व भगवान दोनों को वन्दन,अभिवंदन है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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