यह कर्मों का चित्र सचमुच ही विचित्र है, कितने – कितने जन्मों के साथ का जुड़ा हुआ हमारे इस वर्तमान जीवन का नाता है । कहते है कि उद्देश्य विहीन जीवन मे,आनंद की बात करना, बिल्कुल बेमानी है।
संकल्प के अभाव मे,मंजिल की प्राप्ति, मात्र एक झूठी कहानी है।आदर्श और आचरण के बीच की खाई, कोरे उपदेश से पट जायेगी। हमारी यह सोच भी अपने आप मे,एक बहुत बङी नादानी है। हम देखते है कि कषायों को कौन कषायों से जीत पाया है ।
कषाय क्षमा ऋजुता के सामने कब टिक पाया है ।मनुष्य भव के इस जीवन को सार्थक वह सफल उसने ही बनाया है जो कषाय रूपी कीचड़ में कमल बन मुस्कराया है ।हम जान कर भी कचरे से भरे रहते है ।
हम महावीर को मानते तो है पर हमारी राह उस और नहीं है ।हमारे जीवन की प्रतिमा को सुन्दर और सुसज्जित बनाने में सुख और दुःख आभूषण के समान है, इस स्थिति में सुख से प्यार और दुःख से घृणा की मनोवृत्ति ही अनेक समस्याओं का कारण बनती है और इसी से जीवन उलझनभरा प्रतीत होता है, जरूरत है इनदोनों स्थितियों के बीच संतुलन स्थापित करने की, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की, एक दुखी आदमी दूसरे दुखी आदमी की तलाश में रहता है।
उसके बाद ही वह खुश होता है, यही संकीर्ण दृष्टिकोण इंसान को वास्तविक सुख तक नहीं पहुंचने देता , हम यह देख सकते है कि लोगों के रवैये से या समय के हालातों से आदि किसी को जिन्दगी में धक्का लगा है तो उसके भीतर उसकी असलियत जैसी होती है वह बाहर छलक कर आती है ।
हमें चुनना है कि शांत स्वभाव की गरिमा, इन्सानियत की महिमा या सहनशीलता और सब्र या फिर गुस्सा, ईर्ष्या, अहंकार या नफरत आदि से अपने जीवन को कैसा करना है , किससे भरना है।
हम भौतिकतावाद की इस दुनियाँ में इतने मशगूल हो गये कि अर्थ की इस अंधी दौड़ में धन अर्जित तो खूब कर रहे हैं पर अपने संस्कार और सभी तरह कि आध्यात्मिक गतिविधियों से दूर जा रहे हैं।आज जिसे देखो वो एक दूसरे से आगे निकलने के चक्कर
(क्रमशः आगे)
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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