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कर्तव्य : भाग-2

कर्तव्य
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हम रेल के उदाहरण से भी कर्तव्य को समझ सकते है – रेल रुक रुक कर चलती है वैसे ही हमको सही से जीवन में चलना रुकना रुक कर चलना आदि -आदि चाहिए ।

रेल मंजिल पाने की दिशा में आगे बढ़ती है वैसे ही हम मंजिल पाने की दिशा में आगे बढ़ते जायें तो हमको निश्चित ही सफलता अवश्य मिलेगी ।

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आंधी पानी धूप या वर्षा आदि में भी रेल चलती रहती है ठीक इसी तरह हम भी जीवन में आंधी पानी धूप या वर्षा आदि में बढ़ते जायें जिससे हम सही से सम्पन्नता के पास पहुँच जायें ।

रेल लक्ष्य प्राप्ति के लिये सदा आगे बढ़ती जाती है ठीक इसी तरह हम भी जीवन में दृढ़संकल्प जगाकर सदा लक्ष्य प्राप्ति के लिये बढ़ते रहे ।

रेल जैसे ऊंच-नीच आदि में भेद नहीं करती है हर किसी भी यात्री को मंजिल तक पहुँचाती है ठीक इसी तरह हम भी जीवन में ऊंच-नीच आदि का भेद नहीं करे सबके प्रति समदृष्टि अपनायें वह अपनी मंजिल को प्राप्त करें ।

रेल जैसे सबका भार उठाती है ठीक इसी तरह हम भी अपने जीवन में इतना सबल बने की सबका भार उठा सकें । हमको जीवन में सदैव कर्तव्य निभाकर सभी विपदा में संयत रहना है ।

वह सत्य अहिंसा दया धर्म आदि का मार्ग जीवन में अपना दूसरों के लिए हमको सदैव प्रेरणा स्रोत्र बन सबको मार्ग दिखाना है ।

सक्रिय गतिशीलता और सकारात्मक चिंतन प्रकृति का सहज व सरल स्वभाव है, हम इसमें आत्मरमण करते हुए शुद्ध भावों से विवेकपूर्वक सभी किर्याएँ करें,ये महत्वपूर्ण सन्देश अपनाकर हम सब ये आत्मसात करते हुए अपनी आत्मा को समुज्ज्वल बनाएं ।

यह हमारे लिए बहुत स्मरणीय चिंतन है । हम सबके लिए यह कल्याणकारी मार्ग है । हम दीर्घकाल तक हमारी आत्मा को ऐसे ही अच्छे पुनीत कार्यों के प्रति कर्तव्यों की निष्ठा से कर्तव्यबोध पाकर सभी को कृतार्थ करने में व सहयोग करने में सफल हो।

हमको अपने कर्तव्यों का सही से निर्वाह करके सभी को साथ में लेकर मंजिल तक पहुँच सभी की अच्छी सुनहरी यादों में बस जाना है ।

वह अपने कर्तव्य का सही से निर्वाह कर जिज्ञासु बन जन – जन को हर्षित कर हम सबको आनंदित कर अपने जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करना है । यही हमारे लिए काम्य है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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