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संस्कार अन्तरा -2

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मुझे यह सब सुन आश्चर्य हुआ की एक डॉक्टर ने कितनी गहरी मार्मिक बात मेरे को बोली वह जीवन के लिए कितनी अच्छी सीख दी ।

मैं डॉक्टर की बात सुन जीवन में और अच्छा सीख लिखने को प्रेरित हुआ क्योंकि जब जीवन में उम्मीदे बढ़ती है तो उत्कृष्टता का पैमाना भी और सुन्दर पाने को अभिभूत होता है ।

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मेरा अच्छा करने का यह प्रयास आज भी मेरे द्वारा यथावत गतिमान है । जीवन में हमें अच्छे संस्कारों से आगे बढ़ना चाहिए । जीवन में झूठ बोलना और किसी से फ़रेब करना हर दृष्टि से घाटे का सौदा है।

झूठ बोलने से हमारी पुण्यायी समाप्त होती है और फ़रेब करने से हमारी आत्मा काली और असंख्य कर्मों का बंधन होता है ।

मानव जीवन में संस्कारों में कमी की वजह से इंसान सत्य को झूठ बोलता है । वह अपनी ग़लती छुपाना और भय के कारण इंसान और झूठ पर झूठ बोलता है जबकि सच्चाईं यह है कि क्यों किसी तरह का झूठ बोलना ?

इंसान गलती का पुतला है और इंसान ने ग़लती कर दी। वह उसको भय सताता है कि सत्य बोलूँगा तो उस ग़लती की भयंकर डाँट पड़ेगी।

वह उस ग़लती को छुपाने के लिए पहले झूठ बोलता है फिर उसकी सफ़ाई के लिए बार- बार झूठ पर झूठ बोलता है। अरे ! हमने ग़लती की,उसको स्वीकार करो।

एक ग़लती को छुपाने के एवज़ में पता नहीं कितने झूठ बोलना पड़ता है फिर वो झूठ बोलना हमारे संस्कार में आने लगता है।

यह हो सकता है कि वो झूठ उस समय तो हमारा बचाव कर देगा पर वो झूठ हम ज़िंदगी भर भूल नहीं पाएँगे । वह हर समय हमको भय भी रहेगा कि कंहि मेरा झूठ पकड़ा ना जाए।

वैसे ही इंसान अपने तुच्छ स्वार्थ के वशिभूत अन्य प्राणियों के साथ फ़रेब करता है।वह जब सामने वाले व्यक्ति को उस बात का पता चलता है तब वो उस फ़रेबी को दुतकारता है और अपने दिल से उसे हाय भी देता है और उस समय उस फ़रेबी की इज़्ज़त दो टक्के की रह जाती है।

वह साथ में जो कर्म बंध होते हैं और भोगवाली में आते हैं,तब उस प्राणी के मुख से यही शब्द निकलते हैं कि ज़रूर मैंने कोई घोर अपराध किया है।प्रभु उसी कर्मों का दण्ड मुझे दे रहा है
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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