ADVERTISEMENT

तनाव ध्रुव-2

तनाव ध्रुव-2
ADVERTISEMENT

दुरूपयोग , प्रदर्शन की होड़म-होड़ आदि – आदि कहने पर स्टेट्स का सवाल है यह कहा जाता है इसलिए इतना करना पड़ता है। उस पर इतना क्या बवाल है?

वह यहीं से समस्या शुरू होती है। यह दिखावा हमारा सुख-चैन एक सीमा के बाद छीनने लगता है। हर आने वाला नया अवसर हौवा बनकर आता है।

ADVERTISEMENT

आदमी तनाव की गिरफ्त में आता जाता है क्योंकि वह हमेशा पहले से ज्यादा बढ-चढ़ कर करने की होड़ में जो रहता है। हर बार दूसरे से बेहतर साबित करने की दौड़ में तनाव बढ़ता ही है क्योंकि जो नहीं करना चाहता , वह करना पड़ता है।

हर घड़ी जूझना पड़ता है। जीवन की इसी दौड़ में पारिवारिक, सामाजिक आदि – आदि असंतुलन बढ़ता है। वह असंतुष्टि का भाव कचोटने लगता है। आदमी स्वयं को तो जैसे भूलता जाता है। अपने भीतर झाँकने को तो एक पल भी नहीं मिल पाता है ।

ऐसी सम्पन्नता में क्या धरा है, जिससे आदमी तनाव में धकेल दिया जाए। मुझे ऐसा लगता है कि इस दिखावे के बीच सच्चा सुख पीछे छूटता जा रहा है।

हम देखते है जब कोई हंसकर या क्रोध में कुछ कह देता है या किसी के द्वारा पता चलता है, अर्थात शारीरिक या मानसिक चोट लगती है उस समय हम क्रोध में प्रतिशोध लेने की सोचते हैं पर उस समय हमारा स्वयं पर नियंत्रण करना जरूरी है वरना जीवन में सिर्फ गतिरोध ही रह जाता है।

हमारे लिए प्रतिशोध की भावना का शमण करके शांति का नजरिया अपनाना जरूरी है ताकि जीवन में शांति का निवास रहे।

हम आध्यात्मिकता की ओर बढ़ कर कर्मों की निर्जरा कर सकें। प्रकृति में हर काम समयानुसार ही होते है ठीक इसी तरह हमारे निजी जीवन में कर्म भी समयानुसार ही फलते है ।हम देखते है हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता, जाड़े के बाद ही ग्रीष्म आता है । अतः हमारे द्वारा जीवन का आनन्द लेने के लिए
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

यह भी पढ़ें :

तनाव : ध्रुव-1

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *