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वाणी (सरस्वती) वरदान | शब्दों की दुनिया | वाक् – शक्ति : भाग 4

वाणी सरस्वती
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शब्द कभी भी बोलते नहीं है । वह अपने बंद मुख को कभी खोलते नहीं इसलिए उनका लहजा कभी गड़बड़ाना नहीं जानता इसलिए उनका शब्द कभी लड़खड़ाना नहीं जानता है ।

हमको अगर शब्दों को इज्जत देना है तो लहजे का भी सही से ध्यान रखना होगा, शब्दों के साथ ही साथ हमें लहजे का भी मान रखना होगा।

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हमारे द्वारा बोलते समय सही लहजा व एक – एक शब्दों का चुनाव जरुरी है क्योंकि क्रोध में या अनजाने में कही हुई बात दिल को चुभ सकती हैं और आपस में एक – दूसरे से मनमुटाव हो सकता है।

हमारे द्वारा प्यार से व सोचसमझ कर बोली जाने वाली वाणी सबको अच्छी लगती है। वह उससे उसके व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।

हम देख सकते है कि शिक्षक द्वारा प्यार से कहे जाने वाले शब्द पढ़ो और बढ़ो विद्यार्थियों को शिखर तक पहुंचा सकते हैं और किसी के द्वारा गुस्से में कहे जाने वाले शब्द उसको नीचे की ओर ढकेल सकते हैं।

डॉ . एपीजे अब्दुल कलाम कहते थे- शब्दों की अहमियत को कभी कम मत समझिए, एक छोटी सी हां और नहीं जिंदगी बदलने का दमखम रखती हैं ।

वह सही शब्दों के साथ सही कहने का लहजा इंसान के तन – मन को पंख देते हैं और वह ऊंचाइयों की ओर सही से बढ़ सकता है।

अतः हम शब्दों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए जबान खोलें वह उसका सही से उपयोग करें। हम अपनी अच्छी वाणी और व्यवहार से अपने आपको सुशोभित करें ताकि अर्थ का कभी अनर्थ न हो ! यही हमारे लिए काम्य है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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