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उलझी जिंदगी छोड़ मानव!

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आजकल आदमी ने अपनी दुनिया इस कदर बना ली है कि पग-पग पर सुखी होने के नाम पर दु:खी होने की सामग्री सजा ली है। क्योंकि हम उस और चिन्तन भी नहीं कर पाते हैं ।

माना कि वर्तमान समय में उलझी हुई जिंदगी में बेहतर रहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन व्यक्ति चाहे तो अपने जिंदगी को बेहतर बना सकता है ।

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अपनी जिंदगी को सकारात्मक सोच, व्यायाम , लक्ष्य, आत्मविश्वास, अनुशासन, परिश्रम, कार्य में कुशलता आदि से बेहतर बना सकता है ।

हम अपने जीवन को ऊंचाइयों की ओर ले जाने के लिए हर वह तरीका अपनाते हैं जो हमें पता होता है लेकिन यह तरीका कामयाबी पाने का नहीं परिस्थितियों के पीछे भागना है।

हमारी मंजिल हमारे पास होती है बस हमें उसे पाने और पहचानने की शक्ति होनी चाहिए , इसलिए अगर जीवन में कामयाब होना है तो लोगों के पीछे भागने , दूसरों के सफलता से जलने या दूसरों की देखा देखी करने से अच्छा अपनी मंजिल तक जाने वाला रास्ता खोजने में ही बेहतरी है।

मनुष्य अपने आप को पहचानते हुए, अपनी सोच,समझ व ज्ञान से अपनी खुद ही खुद की मिसाल बनकर अपनी जिंदगी में नयापन ला सकता है।

इन्सान जब तक मन में दृढ़ संकल्प न कर लें कि वह अच्छी आदतों को ही अपने जीवन में उतारेगा, उसके लिए चाहे कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े, वह पिछे नहीं हटेगा , तो ही मनुष्य एक नेक इंसान बन सकता है ।

सत्संग का भी बहुत प्रभाव पड़ता है, जैसे कि हम ज्ञानियों के प्रवचन आदि सुनते हैं तो उस समय बुरी आदतों को छोड़ने का फैसला करते हैं । हम आजकल की इस मकड़ी के जाल की तरह उलझी जिंदगी को छोड़े व सादगी से रहें , ऊँची सोच रखे , कृतज्ञता का भाव सीखे , अंजलि भर-भर प्यार बाँटे और चेहरे पर ही नहीं मन में भी सदा मुस्कान रखे ।

क्योंकि जब जिंदगी हमारी है तो क्यों न हम इसे सदा प्रसन्नतापूर्वक जिएँ । यदि हमारी मुस्कुराहट कई उदास चेहरों पर हँसी ला सकती है तो हमारा मुस्कुराना बहुत अच्छा है ।

हँसना स्वस्थ और सुखी रहने का एक बढ़िया फंडा है । मुस्कुराहट में वह जादू है कि इसके होठों पर आते ही तनाव रूठकर चला जाता है ।

इसका जादू जल्दी ही आसपास मौजूद सभी लोगों पर छा जाता है और उदास चेहरों पर हँसी बनकर यह राज करने लगती है ।तभी तो कहा हैं कि उलझी जिंदगी को मानव छोड़े ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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