बुजुर्ग अपने अनुभव से बहुत अच्छी बात कहते है । किसी बुजुर्ग ने दो मार्मिक बहुत अच्छी बात कही है । आज की दुनिया में यह प्रायःदेखने में आता है कि सब अपने मतलब की बात तो बहुत अच्छे से समझते हैं पर बात का मतलब बिरले ही समझते हैं।
हम इस कदर तरक्की कर चुके हैं कि हाथ में पकड़े हुए मोबाइल की अहमियत पास में बैठे अपनों से भी ज्यादा दिखाने में जरा भी हम नहीं हिचकिचाते हैं।
आजकल विज्ञान की उन्नति के कारण इस मोबाइल के आ जाने से सारी दुनिया की खबर तो सबको रहती है परन्तु अपनापन खो सा गया है| सभी इस छोटे से खिलौने में इतने व्यस्त हैं कि रिश्तों की अहमियत गायब हो गयी है ।
कहते हैं पत्थर तब तक सलामत है जब तक वो पर्वत से जुडा है , पत्ता तब तक सलामत है जभब तक वो पेड से जुडा हैं , इंसान तब तक सलामत है जब तक वो परिवार व अपनों से जुडा है , क्योंकि अपनों से अलग होकर आजादी तो मिल जाती है लेकिन संस्कार चले जाते हैं |
हम आज के समय में इस भौतिक चकाचौंध में कहीं खो गये हैं या भीड़ में खो गयें हैं , इससे अच्छा तो हम एकांत में खो जायें फिर जो इससे हमको अनुभव हो वह दूजों को बताना।
धर्म शुद्ध आत्मा में टिकता है ।व्यक्ति धर्म करता है , अनेकों – अनेकों जन्मों के कर्म साथ लेकर चलते हैं , संस्कारों का बोझ भी ढोते हैं जिनमें अच्छे और बुरे सब आते हैं , यह सब संयोग पर निर्भर करता है । व्यक्ति में ग्रहण शीलता होने पर ही ज्ञान टिकता है ।
धर्म शुद्ध आत्मा में ही टिकता है । शुद्ध आत्मा किससे कहें ! उसके क्या गुण या लक्षण होते हैं आदि – आदि । जो व्यक्ति ऋजू मना होता है , सरल हृदय वाला होता है , अनुकंपा शील होता है वही शुद्ध आत्मा वाला माना जाता है ।
आचारांग सूत्र में बताया गया है कि शुद्ध मन वाला व्यक्ति जैसा भीतर से होता है वैसा ही बाहर से होता है वह किसी के साथ धोखा धडी नहीं करता हैं । हमें अपने जीवन में किसी के साथ भी छल , कपट नहीं करना चाहिए ।
हमारा जीवन पारदर्शी होना चाहिए । व्यक्ति को शुद्ध और नेक जीवन जीना चाहिए । जिस प्रकार शुद्ध पात्र में वस्तु ठहर पाती है वैसे ही धर्म के लिए भी शुद्ध आत्मा का होना जरूरी है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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