हमारी आत्मा पर लगे यह कर्मों का चित्र सचमुच ही विचित्र है और कितने – कितने जन्मों के साथ जुड़ा हुआ है , वह इस वर्तमान जीवन का नाता है । हम देखते है कि आदमी बुद्धिमान होकर भी जीवन के इस सच को क्यों नही समझ पाता है ।
हमारे जीवन के लंबे सफर में न धन साथ में जाता है न परिवार, फिर भी हम यह भार व्यर्थ ढोने से कहां चूकते हैं ? इसलिए हमें स्थाई शांति व स्थाई सुख के पथ को ही अपनाना है और उसी दिशा में अपने चरणों को सदा गतिमान बनाना है ।
हम दैनिकचर्या में चलते रहते हैं, वह सोचते भी नहीं कि छोटी से छोटी चीज भी कुछ न कुछ कहती ही रहती है। हमको अपने जीवन में बड़ो, गुरुओं आदि द्वारा बराबर कहा जाता है कि संसार में कोई भी ऐसी चीज नहीं है, उससे जैसी कुछ न कुछ शिक्षा न ली जा सके ।
उदाहरणार्थ: आइना कहता है स्वागत सभी का संग्रह किसी का नही । जूते कहते जादूगरी क़दमों में हो तो नामुमकिन मंझिल मिले। छेनी कहे नफ़रत के विंध्याचल तोड़ों। नन्ही वर्तिका तूफ़ान की वाचालता से लड़ना सीखाती।
तस्वीर का उत्साह स्वयं के लिए प्रेरणा हैं। स्कूल का बैग ज़िंदगी का बोझ उठाना सीखाता हैं। किताब सीखाती हर ख़्वाब पूरा करो। पानी कहता हर रूप में ,हर परिस्थिति में ढलों। नींव का पत्थर मज़बूती सिखायें। कुँए से पानी निकालते समय केवल दो अंगुल रस्सी हाथ में रहती है तो भी पूरी रस्सी एवं पानी का डोल बाहर निकाला जा सकता है।
पतंग आकाश में उड़ती है,उस समय हाथ मे डोर का थोड़ा सा हिस्सा रहता है उसी के बल पर वह नभ की ऊँचाइयों को छूती है। वह जहाँ तक घड़ी की बात हैं तो कहना चाहूँगा कि खुद पर विश्वास रखो एक दिन ऐसा आएगा कि घड़ी दूसरे की होगी और समय आपका होगा ।
कहते है कि सूरज-चाँद रिश्तो में झुकना कोई अजीब बात नहीं है क्योंकि सूरज भी तो चाँद के लिए ढल जाता है । हमारा जीवन बहती धारा है इसका कोई किनारा नहीं है ।
यहाँ अविरल उतार चढ़ाव है , निरंतर भाव अभाव है ,सतत प्रतिभाव स्वभाव है , अनवरत प्रवाहमान है । हमें इन सभी अनुस्रोत प्रतिस्रोत के आत्म स्वभाव में वह सकारात्मकता के मैदान में जाना है तो हमें कमियां औरों की नहीं नजर आएगी और न ही हम स्वयं को अतिरिक्त समझेंगे। ‘ नो हीणे नो अइरीत्ते ‘ का भाव हो जायेगा भावित । यही हमारे लिए काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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