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ज्ञान बाँटने की वृत्ति देती है विकास को गति

ज्ञान बाँटने की वृत्ति
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एक घटना प्रसंग मुझे दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराज जी स्वामी ( श्री ड़ुंगरगढ़ ) कहते थे कि प्रदीप तुझे नई पीढ़ी व समाज में सदैव सब जगह रहना है और तेरे ज्ञान को तुझे सबके पास रखना है ।

मुनिवर तो अभी नहीं रहे लेकिन उनके द्वारा दी हुई सभी शिक्षा को मैं आज भी सदैव अपने जीवन में उतारने को प्रयासरत हूँ । हम देखते हैं कि जो अपने ज्ञान को बांटने में व्यर्थ कंजूसी करता है, वह अपने ज्ञान के अर्जित भंडार को अपने साथ में लेकर ही मरता है ।

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अतः ज्ञान सदा बांटना सीखो क्योंकि यह बांटने से ही बढ़ता है, और इसे खुले हाथो से बांटने वाला ज्ञान वृद्धि के नए शिखर पर चढता है । मानव की सभ्यता के विकास के पीछे सबसे बड़ा हेतु मानव की पारस्परिक ज्ञान बाँटने की वृत्ति है ।

आज के असीम तकनीकी युग में आदिम युग से अभी तक इसी वृत्ति ने सभ्यता में वृद्धि की है और आज भी अनवरत आगे से आगे यह प्रगति जारी है। सरस्वती यानी ज्ञान के भंडार की एक विशेषता​ है कि इसे जितना साझा किया जाए यह उतना ही बढ़ता है।

हमारे द्वारा यदि ज्ञान/जानकारी आदि साझा न की जाए तो यह निरंतर घटती रहेगी। हम और गहराई में जाएँ तो इस ज्ञान बाँटने की वृत्ति के पीछे प्रेरक शक्ति मृत्यु के शाश्वत सत्यता का भान है । वह जन्म के साथ मृत्यु अवश्यंभावी का ज्ञान है |

हम कोई भी विशिष्टता को प्राप्त करते हैं तो उसमें भी कोई न कोई माध्यम बनता है तभी हम उसे पाते है । ज्ञान बांटने से हमारा ज्ञान भी बढ़ता है और साथ मे सामने से बहुत लोग उससे लाभान्वित हो सकते है |

ये एक सेवा है ,मानव धर्म है , ज्ञान दान आदि है जो हमने पाया है वो भी किसी की देन है । हम आगे से आगे इसे वितरित करते हुए परम् आनंद और सुख पाने और देने का प्रयास करें | वह सभी के ज्ञान का विकास हो सबमें शक्तियों का जागरण हो ये भाव हमें सही से परमपद तक पहुंचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं ।

अतः हम ईर्ष्या जलन आदि से उपरत होकर अपना कर्तव्य निभाऐ ।हमको एक दिन तो चले ही जाना है, इस शाश्वत सत्य ने ही मानव में आगे से आगे की पीढ़ी को ज्ञान बाँटने की वृत्ति जगाई है और हम अनवरत, अनथक प्रगति की ओर गति कर रहे हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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