कहते है की सृष्टि जगत के नियंता ने हरेक को दो हाथ, दो पाँव, एक नासिका, एक मस्तिष्क , दो आँख व दो कान दिए हैं पर हर कोई दूसरों जैसे महान नही बन सकता है औरों जैसा बुद्धिमान नहीं बन सकता हैं क्योंकि हर आदमी अपने कर्म अनुसार ही जीवन जीता है।
मनुष्य को सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए कर्म करने की आवश्यकता पड़ती है । कर्मप्रधान व्यक्ति ही जीवन में वास्तविक सुख का आनंद प्राप्त कर सकता है। अकर्मण्यता मनुष्य को निराश और भाग्यवादी बनाती है।
मनुष्य के कर्म अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ कर्म तो वह अनिच्छापूर्वक बाध्यता के साथ करता है परंतु मनोयोग से किया गया कृत्य ही उसे सच्चा आनंद प्राप्त कराता है ।इन समस्त क्रियाओं में अध्ययन सर्वश्रेष्ठ है।
अतः अध्ययनप्रिय व्यक्ति स्वयं को सदैव प्रसन्नचित्त अनुभव करता है । जैसे को तेसा।यह तो सभी इंसान करते हैं। अगर यही मानसिकता हमारी रही तो सामने वाले में और हम्हारे में फ़र्क़ क्या रहा।
बुराई कभी बुराई से नहीं जीती जा सकती। बुराई के बदले भलाई सोचेंगे तो हम एक दिन सामने वाले इंसान को ज़रूर बदल देंगे। कोई व्यक्ति हम्हारे साथ ग़लत करता है।यह उसका करम है।इसका उदाहरण एक कहानी से।
दो पड़ोसी अग़ल बग़ल के मकान में रहते थे।एक पड़ौसी दूसरे पड़ौसी के घर के सामने रोज़ कूड़ा गिराता था। बग़ल वाला पड़ौसी जब कूड़ा देखता तो वो अपने बगीचे से फूल तोड़ कर एक गुलदस्ता उसके घर के आगे रख देता। यह क्रम कई दिनो तक चलता रहा।
हारकर कूड़ा फेंकने वाला पड़ौसी अपने बग़ल वाले मकान मालिक को पुछा कि मैं रोज़ तुम्हारे घर के सामने कूड़ा गिराता हूँ और उसी दिन तुम रोज़ मेरे घर के आगे फूलों का गुलदस्ता रखते हो। क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता ?
तब पड़ौसी ने जवाब दिया कि जिसके पास जो होगा वो ही देगा। तुम्हारे पास कूड़ा है, तुम वो देते हो और मेरे पास फूल है, मैं तुम्हें फूल देता हूँ। जो व्यक्ति कूड़ा गिराता था उसकी आँखें शर्म से झुक गयी और अपने पड़ोसी से माफ़ी माँगी। उस दिन से उसका हृदय परिवर्तन हो गया।
इसलिए जीवन में कौन हमारे साथ क्या व्यवहार करता है हम्हें उस पर ध्यान नहीं देना चाहिये।हम्हें अपनी तरफ़ से हमेशा अच्छा ही व्यवहार करना चाहिये।यही एक अच्छे इंसान की सोच कहलाती है तभी तो कहा है कि कोई मनुष्य विशिष्ट बन जाता है और कोई साधारण-अवशिष्ट रह जाता है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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