हर मानव चाहता है की मेरा जीवन आनंदित रहे लेकिन यह सम्भव तभी होता है जब मानव मनोभाव, चिन्तन और तन को नियन्त्रित कर मन को सामंजस्यपूर्वक एक दिशा में काम करने को प्रेरित करे एवं मस्तिष्क से सोचें सदा सकारात्मक व रचनात्मक व आशावादी भावनात्मक सदा रहे साथ में योग का भी नियमित क्रम हो।
हमारी आशाएँ और आकांक्षाएँ हम्हें आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है पर हर इंसान मन में यह सोच कर चले कि मैंने अपने मन में आकांक्षाएँ और आशाएँ तो बहुत की अगर उसका परिणाम हमारे अनुकूल हुआ तो बहुत अच्छी बात है और परिणाम आशाएँ के विपरीत रहा तो कोई बात नहीं। जो मेरे भाग्य में था उसी में संतोष है।
मन में यह भी सोचें की जो मुझे प्राप्त हुआ उतना तो बहुत लोगों को भी नसीब में भी नहीं ।इसलिये जीवन में आशाएँ और आकांक्षाएँ ज़रूर रखो पर पूरी नहीं होने पर जो प्राप्त हुआ उसमें संतोष करना सीखो।
जीवन का भरपूर आनंद हर हाल में हर जगह में होगा यदि उत्साह की गाड़ी में हम सवार है। कहने को तो स्वर्ग भी हताश से भरा है पर जहाँ जोश है हौंसला है वह धरा भी स्वर्ग से कम नही है तभी तो टूटते नहीं मुसीबतों में यही अपनी पहचान है।
हिलते नहीं हवाओं से हम तो एक चट्टान है। बर्फ नहीं जो दो पल में पिघलने कि हमें आदत है।जज्बे से हर वक्त को बदलने कि हमें आदत है। हम ख़ुद को मजबूत माने और विकट परिस्थिति में भी नहीं हारे बल्कि और ताकत से लड़ते हुए जीत जाए बस यही उत्साह सदा बना रहे तब स्वतः ही सफलता का संजीवन रहेगा व आनंदित जीवन होगा।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :-