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आदिमानव का पता हमें धीरे धीरे चला

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हमें पहले मानव के बारे में धीरे धीरे पता चल रहा है, हमें प्राचीन मिट्टी की गहरी सतहों पर कभी-कभी उनकी हड्डियों के कुछ टुकड़े मिले हैं।

ये टुकड़े उन जानवरों के अस्थिपंजर के साथ मिले जो जानवर धरती से बहुत पहले ही गायब हो चुके थे, उस समय मानवीय नस्ल एक कुरूप और अनाकर्षक काफी छोटा स्तनपायी था।

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सूरज की तपिश और सर्दियों की कटकटाती सर्द से उसके शरीर के रंग का पता नहीं क्योंकि उसका सारा शरीर लंबे लंबे बालों से ढका था, उसका सिर, उसके शरीर का ज्यादातर हिस्सा, उसके हाथ-पाँव, सब लम्बे और कड़े बालों से ढँके थे।

उसकी उँगलियाँ बेहद पतली लेकिन मजबूत थीं जिसके कारण वे बन्दरों की तरह दिखायी देती थीं,उसका माथा छोटा था,उसका जबड़ा जंगली जानवरों के जबड़ों की तरह था, वह अपने दाँतों को काँटे-छुरे की तरह इस्तेमाल करता था।

उसके पास शरीर सुरक्षा का कोई साधन नहीं था,उसने ज्वालामुखी की आग के अलावा और कोई आग शायद ही कभी देखी हो,उन दिनों ज्वालामुखी पूरी धरती को अपने धुएँ और लावे से भर देता था।

उसका जीवन लम्बे-चौड़े जंगलों के नम अँधेरों में गुजरता था,पेंड़ पौधों की पत्तियां,फूल,फल,जड़ें उसकी भूँख मिटाने के साधन थे।

दिनभर भोजन की तलाश उसकी दिनचर्या थी,उसके पास सुरक्षा के कोई साधन नहीं थे,इसलिए उसे हर समय रात हो या दिन उसे जंगली जानवरों का डर रहता था।

यही वजह है कि आदिमानव का ठिकाना बंदरों की तरह पेड़ों पर था,उस समय ऐसी दुनिया थी जहाँ या तो आदिमानव दूसरे को खा जायें या दूसरा आपको खा जाये।

इसी संघर्ष ने आदिमानव को मांसाहारी बना दिया,जिन्दगी बहुत कठिन थी क्योंकि हर तरफ खौफ और गम के साये थे, गर्मियों में मानव को सूरज की तेज और चिलचिलाती किरणों का सामना करना पड़ता था, और जाड़ों में उसके बच्चे ठण्ड में जमकर उसकी बाँहों में दम तोड़ देते थे,जिंदगी बड़ी कठिन भयानक थी।

उस समय आदिमानव जंगली जानवरों की तरह ही अजीब आवाजें निकालते थे,आगे चलकर उसने अपने साथियों को खतरे से आगाह करने के लिए हुंकार भरना सीख लिया।

यह उसकी पहली भाषा थी,इसी समय चीखने की भाषा का प्रयोग किया था,आदिमानव के पास कोई औजार नहीं था,उस समय तक उसके पास जमीन पर कोई घर नहीं था।

वह पैदा होता था और मर जाता था,कई हजारों साल पहले इस दुनिया में कुछ ऐसे स्तनपायी रहते थे जो अन्य सभी जानवरों से काफी अलग थे-जो शायद किसी अनजाने बनमानुष सरीखे जानवर से विकसित हुए थे जिसने अपने पिछले पैरों पर चलना और अपने पंजों को हाथों के रूप में इस्तेमाल करना सीख लिया था, यही शायद उस जीव से जुड़े थे जो हमारा निकटतम पूर्वज था।

बीएल भूरा

भाबरा जिला अलीराजपुर मध्यप्रदेश

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