अहंकार और क्रोध का सदैव साथ में योग रहता हैं । इसलिये दोनों के साथ विनाश का योग रहता है । क्रोध करने पर क्रोधकर्ता को कोई दंड दे या न दे क्रोध स्वयं उसे दण्ड दे देता है ।
दूसरी बात क्रोध करना एक तरह से जलते कोयले को दूसरे पर फैकने के समान है इस फैंके हुए कोयले की अग्नि में कोई दूसरा जले या ना जले क्रोध करने वाला स्वयं तो जल ही जाता हैं ।
क्रोध वह शस्त्र है जो मुस्कुराहट के हस्ताक्षर को मिटा देता हैं। क्रोध वह पाप है जो धर्म और मर्यादा की सीमा लाँघ अनिष्टता में प्रवेश करता हैं।
शक्ति का सही दिशा में प्रयोग ही पुण्य है और गलत दिशा में प्रयोग ही पाप है। अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करने की साधना आनी चाहिए।
जिस प्रकार क्रोध शिवजी ने भी किया लेकिन क्षण विशेष के लिए , कामदेव को भस्म करते समय क्रोधित हुए पर जब कामदेव की पत्नि रति आई तो उसे देखकर द्रवित हो गए।
क्रोध वह उत्तेजक वस्तु है जो जीवन की मधुरता और सुंदरता का नशा करती हैं । क्रोध वह ज्वाला है जो दूसरों के साथ साथ स्वयं का भी ह्रास करती हैं ।
जहाँ क्रोध है वहां अहंकार का सर्वदा वास होता हैं । क्रोध अवस्था में सिंचित क्यारी भी जल कर राख बन जाती हैं । क्रोध में पागल मनुष्य वाक् संयम को लाँघ जाता है ।
क्रोधित व्यक्ति का विवेक और धैर्य कोसों दूर भाग जाता हैं । क्रोध में मनुज दुर्बल बनता पर उसको कहाँ इसका भान होता हैं । सचमुच वह सबके दया का पात्र बन जाता है ।
इसलिये क्रोध जब आये तो मुंह में मिश्री डालो , पानी के दस घूंट पी लो , उठ कर दूसरे कक्ष में चले जाओ या मौन धारण कर लो आदि – आदि कार्य कर लो ।
क्रोध कषायो का राजा है । चाहे कोई दूसरा भी गलती करे परंतु हमें उस क्रोध रुपी अग्नि पर पानी डालना चाहिएं न कि उसका प्रत्युत्तर उसी रुप में दें ।
क्रोध हमेशा पहले करने वाले की बुद्धि नष्ट करता है फिर दूसरे की। अच्छा होगा इस क्रोध रुपी नाग से बचकर रहें। इस तरह हम कह सकते है कि अहंकार और क्रोध में समभाव का बोध हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)