इन्सान गलतीयों का पुतला हैं । हम काम करेंगे तो ग़लतियाँ होगी ही होगी क्योंकि ग़लतियाँ करेंगे तभी तो हम अपने आप में सुधार ला सकते है और गलती करे बिना सुधार होगा नहीं इस चिन्तन से हम कह सकते है कि ऐसा कोई नहीं जिससे भूल हो ही नहीं ।
गलती स्वीकारने वालों को,शिखर पर चढते देखा है। झूठे अहं का पोषण करने वालों को,लुढ़कते देखा है। ऋजु मन वालों के जीवन की गाङी ही सरपट दोङती है ।
टेढ़ी मानसिकता वालों को तो उसे घसीटते हुए देखा है। इंसान ग़लतियों का पुतला होता है।गलती होना आसान है पर अपनी गलती को स्वीकार करना बहुत कठिन है।
हम एक गलती को छुपाने के लिये दूसरी गलती करते हैं झूठ बोलना।जब इंसान एक झूठ बोलता है तो फिर उसकी सफ़ाई में कई और झूठ बोलने पड़ते हैं।
एक तो गलती की,फिर झूठ बोलना, चाहे हमारी गलती उजागर ना हुयी हो, पर हमारी आत्मा ज़रूर काली होती है। जब भी वो बात याद आती है, हमारी आत्मा हम्हें सदैव धिक्कारती है।
अंदर ही अंदर हम को मन में ग्लानि भी होती है।एक बात गौर करना कि जीवन में चाहे लाख अच्छे क़ार्य कर लेना,ज़रूरी नहीं आपको वो सारे याद रहे पर आप ने जो भी ग़लत क़ार्य किये हैं वो आप ता उम्र भूल नहीं पाओगे।
इसलिये अगर ज़िंदगी में कभी भी कोई गलत क़ार्य हो जाये तो उसे स्वीकार करने की हिम्मत रखो।हो सकता है कि एक बार किसी से आपको ओलमा मिलेगा पर उसके बाद आप मानसिक रूप से हल्के महसूस करेंग़े, आत्मा काली होने से बचेगी और साथ में आपकी साख भी बढ़ेगी कि अगर यह बोल रहा है कि इसने गलती नहीं की तो सामने वाला व्यक्ति उस पर हमेशा विश्वास करेगा।
हम इस जन्म – मरण के जंजाल से तभी मुक्त हो सकते हैं जब अपनी अंतर आत्मा से रुख जोड़ सकते है।यदि इस अनमोल भव और समय के मोल को हम पहचान लेते हैं तो इस मानव जन्म को हम सार्थक कर लेंगे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :