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क्रोध-ईर्ष्या-परनिंदा : Anger Jealousy Condemnation

Anger Jealousy Condemnation
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क्रोध-ईर्ष्या-परनिन्दा आदि ऐसे आग के शोले है जो कर्ता के तन – मन को जला डालते हैं और आत्मा को कर्मों से मलिन करते है। क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के सामान है इसमें हम स्वयं ही जलते हैं। अतः हम अपने क्रोध के लिए दंडित नहीं होते बल्कि हम अपने क्रोध के द्वारा दंडित होते है।

जैसे मकान को साफ नहीं करने से बेमतलब के सामान व कचरा भर जाता है| वैसे ही मन को साफ नहीं रखेंगे तो इसमें गलतफहमियां, ईर्ष्या द्वेष व क्रोध आदि भर जाता है|तन के साथ मन को भी सरल व साफ रखें| मन में भर के मत जीओ , मन भर के जीओ।

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खुद भी जिन्दादिल व खुश रहेंगे व दूसरों को भी खुशी दे सकेगे| ईर्ष्या करने से सामने वाले का कुछ नाश नहीं होगा। हमारा ही सम्पूर्ण बिगाड़ जाएगा। क्रोध करने से सामने वाले का अहित लिगार नही होगा उल्टा हमारा ही अहित अणपार जाएगा।

पर परिवाद से किसी दूसरे का कुछ ह्रास नहीं होगा। हमारी ही आत्मा क्लांत होती जाएगी। चुगली और मोहनीय कर्म का संघात है । यह सामने वाले के तो बिल्कुल घात नहीं करती बल्कि निंदा करने वाले की नींद हराम करती है वह सामने वाला आराम के साथ सोता हैं ।

अतः बुरी बातें छोड़ अच्छाइयों का विकास करे तभी जीवन में शांत सहवास फलित होगा व महान बनेंगे। हम यह नहीं भूले कि आग घर वही जलाती है जिसमें आग लगती है और याद रखें तन-बदन ही हमारी आत्मा का घर है। वह सुरक्षित तभी तक है जब तक इसे बुरे कर्मों का डर हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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