साल 2009 में आई फिल्म ‘3 इडियट‘ ज्यादातर लोगों को याद होगी। इस फिल्म ने साइंस, मेडिकल और इंजीनियरिंग क्षेत्र में चलने वाली भेड़ चाल के प्रति लोगों की आंखें खोलने का काम किया ।
इस फिल्म ने ही लोगों को यह समझाया कि साइंस पढ़ना हो या आर्ट, यह मायने नही रखता बल्कि मायने यह रखता है कि आपकी काबिलियत क्या है ?
क्या आपके अंदर कोई हुनर है जो आपको काबिल बना सकें? फिल्म अभिनेता Amir Khan ने इसमें रैंचो का किरदार निभाया था। रेंचो बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने अपनी कल्पना और हुनर से अपनी काबिलियत को निखारा।
रैंचो फिल्म के अंत में किसी बड़ी कम्पनी या अंतरराष्ट्रीय कंपनी के साथ काम नही करता है बल्कि समुदाय के लोगों के लिए साधन जुटाने में मदद करता है और देश के बच्चों को आगे बढ़ने के लिए राह बनाता है। कुछ इसी तरह की कहानी है आज के कहानी के नायक की।
हम बात कर रहे हैं उड़ीसा के बरार गांव के 24 वर्षीय Anil Pradhan की, जिन्होंने कटक से लगभग 12 किलोमीटर दूर अनोखा स्कूल बनाया है।
यहां पर अनिल बच्चों के लिए किसी रेंचो से कम नही है। उन्होंने अपने गांव में एक अनोखा स्कूल खोल रखा है जिसका नाम है International Public School For Rural Innovation -IPSFRI ( इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल फॉर रूरल इन्नोवेशन) , जहां पर बच्चों को तकनीकी और इनोवेशन के पाठ पढ़ाए जाते हैं और उन्हें रटने के बजाय पढ़ाई का दैनिक जिंदगी में उपयोग करने की बातें सिखाई जाती है।
गांव में पले बढ़े अनिल के पिता सीआरपीएफ में थे। Anil Pradhan बचपन में पढ़ाई के लिए कई तरह की परेशानी झेली थे, क्योंकि वह गाँव मे रहते थे और उन्हें पढ़ने के लिए गांव से लगभग 12 किलोमीटर दूर साइकिल से जाना पड़ता था।
कई बार यात्रा के दौरान उनकी साइकिल खराब हो जाती थी, तो उन्हें काफी मुश्किल होती थी। लेकिन हर मुश्किलों से पार करने के लिए वह कोई न कोई जुगाड़ बना ही लेते थे और इसी तरह उनका रिश्ता नवाचार और जुगाड़ से जुड़ गया।
Anil Pradhan जीवन में आगे बढ़ने और अपनी इस सोच के लिए अपने माता-पिता को इसका श्रेय देते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पिता एसके प्रधान ने उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह सीआरपीएफ में होकर देश और देशवासियों के प्रति समर्पण और इमानदारी से देश की सेवा करते थे।
उन्ही से सीख लेकर अनिल ने गांव में स्कूल खोला। इसकी प्रेरणा उन्हें अपनी मां से मिली। माता पिता के संघर्ष में ही अनिल को आम लोगों के लिए कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित किया।
अनिल ने सिविल इंजीनियरिंग में वीर सुरेंद्र सई यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी दाखिला लिया जहां पर उन्होंने डिग्री के साथ-साथ रोबोटिक सोसाइटी में भी हिस्सा लिया और कई प्रोजेक्ट किये।
इसी के चलते वह यूनिवर्सिटी के Student Satellite Team (स्टूडेंट सैटेलाइट टीम ) का हिस्सा भी बन गए, जिसमें Hirakund Dam को मॉनिटर करने के लिए एक सेटेलाइट बनाया गया था।
Anil Pradhan ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक ऐसा रोबोट भी बनाया था जो बिजली के खंभों पर चढ़कर वायर को ठीक कर सकता था।
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Anil Pradhan कहते है “आज मै जो भी कुछ बन पाया हूं, उसमें कॉलेज के दोस्तों का भी बड़ा योगदान है, कॉलेज के दौरान हमारी एक टीम हुआ करती थी, जो मेरे अंदर आत्मविश्वास को बढ़ाती है ।
कॉलेज में ही मैंने यह देखा कि मेहनत करने वालो के लिए कोई भी चीज़ नामुमकिन नही है, यही वजह थी कि Civil Engineering के साथ-साथ मैंने मैकेनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक और प्रोग्राम में में भी सीखा”।
नवाचार के अलावा वह विश्वविद्यालय में एक ऐसे उपकरण को भी विकसित किया था जो कारखानों और आवासीय भवनों द्वारा बिजली की खपत को 60% तक कम कर सकता था। इसे इंफ्रास्ट्रक्चर की टॉप सेविंग स्टूडेंट परियोजना में सूचीबद्ध भी किया गया था।
मालूम हो कि अनिल को उनके सभी अन्वेषण और उनके स्कूल को इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल फॉर रूरल इनोवेशन के लिए भारत सरकार की तरफ से National Youth Icon (नेशनल यूथ आइकन) का अवार्ड साल 2018 में दिया गया था।
इसके अलावा अनिल केंद्र सरकार द्वारा चलने वाले Atal Innovation Mission (अटल इन्नोवेशन मिशन ) में मेंटर फॉर चेंज भी बनाए गए हैं और भुवनेश्वर के क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र में इनोवेशन मेंटर के रूप में नियुक्त हैं।
इतनी उपलब्धि और नाम कमाने के बाद भी अनिल अपने गांव वापस आते हैं और वहां पर रूरल इन्नोवेशन का एक सेंटर बनाने की ठानते हैं।
अनिल कहते हैं “मेरी पढ़ाई लिखाई गांव में हुई है, आगे की शिक्षा के लिए मुझे बाहर जाना पड़ा, लेकिन कोई भी बेहतर शिक्षा के लिए अब पलायन न करें और उसे बेहतर शिक्षा और अनुसंधान के लिए अवसर मिल सके इसके लिए हम वहां गांव में ही कुछ करना चाहते हैं”।
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Anil Pradhan कहते हैं कि “मेरा मानना है कि स्कूलों में जो भी कुछ पढ़ाया जाता है, वह बच्चों को सिलेबस के बोझ से दबा देता है और बच्चों को रचनात्मक और क्रियात्मक प्रतिभा को उभारने का मौका ही नही मिलता। इसलिए मै ऐसे बच्चों को तैयार करना चाहता हूं जो समस्या को नही बल्कि समाधान के बारे में सोचे”।
Anil Pradhan बताते हैं कि उन्होंने इस स्कूल की स्थापना अपने माता-पिता और खुद के पैसों से की। स्कूल की प्रिंसिपल और देख का काम उनकी मां करती हैं जो कि सीआरपीएफ स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकी है। जब यह स्कूल शुरू हुआ तो बच्चों के माता-पिता को स्कूल आने के लिए मनाना काफी मुश्किल काम था।
Anil Pradhan बताते हैं स्थानीय गांव के लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजा करते थे क्योंकि वहां पर उन्हें खाना मिलता था और उस समय अनिल और उनकी मां इतने सक्षम नही थे कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मुफ्त में दे और साथ में खाना भी दे, लेकिन उन्होंने एक चार्ट बनाया और उसे गांव में दिया।
जिससे वे अपने बच्चों को सही पोषण पहुंचा सके और उन्होंने बच्चों को टिफिन दिया ताकि घर से चार्ट के हिसाब से खाना लाये। धीरे-धीरे स्कूल में होने वाली अनोखी पढ़ाई लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई और ज्यादा से ज्यादा लोग अपने बच्चों को इस स्कूल में भेजने लगे।
शुरुआत में इस स्कूल में सिर्फ 3 बच्चे होते थे, लेकिन आज इसमें ढाई सौ से भी ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। यह स्कूल प्री से 6th क्लास तक है।
स्कूल में बच्चों के लिए कोई भी परीक्षा नही कराई जाती है। इसकी जगह छात्रों से प्रश्न पूछे जाते हैं और उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर एक ग्राफ पर उन्हें वर्गीकृत कर दिया जाता है, जो कि उनके एकेडमिक प्रदर्शन में प्रोग्रेस को दिखाता है।
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Anil Pradhan अपने स्कूल के बारे में बताते हैं कि वह अपने स्कूल में कुछ ऐसी भी गतिविधि भी कराते हैं जिसमें खेलना, क्राफ्टिंग और प्रयोग करना भी शामिल है, जिसके जरिए वह यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि किस छात्र का झुकाव किस विशेष क्षेत्र की तरफ है।
इसके अलावा Practical Applications (प्रैक्टिकल एप्लीकेशन ) के जरिए बुनियादी विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करते हैं। यहां छात्रों को प्लास्टिक की बोतल का गमले के लिए प्रयोग करना भी सिखाया जा रहा है।
साथ ही यह भी सिखाया जाता है कि प्लास्टिक को कैसे डंप करें और उसे कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। अपनी आगे की योजना के बारे में Anil Pradhan बताते हैं कि उनकी योजना उड़ीसा में ऐसे और स्कूल खोलना है और एक ऐसा इनोवेशन रेजिडेंशियल स्कूल को बनाना है जिसमें दूसरे राज्य से आने वाले छात्रों को भी दाखिला मिले।