हम हमारे जीवन में जब भी अवसर आता है ख़ुद के लिये परिवार के लिये कोई न कोई चिन्तन या विचार का ताना – बाना बुनने
लगते है। क्या हमने यह सोचा कि इस आपा – धापी में हमारी ज़िन्दगी तो सूरज के शाम को ढलान की तरह ढल रही है ।
क्या हमने अपनी आत्मा के कल्याण के निमित सही से संत समागम का चिन्तन किया है । संत के प्रवचनों में एक झंकार है , एक टंकार है , एक ललकार है , एक फटकार है और साथ में एक मनुहार है पर बात बहुत वज़नदार है।
वे ना हमसे नोट माँगते है ना वोट ना सपोर्ट वे हमसे हमारी खोट माँगते है । इतिहास में देखे हम तो गुरु वाणी का हर अक्षर अमर है और आत्मसात करने वाला मंगलकर है। राम-कृष्ण,बुद्ध-वीर की धरती भारी, गुरु उपदेशों से बने आज अविकारी।
उनके अक्षर, शब्द, वाक्य, वक्तव्य चारों सिर्फ़ हमारे लिए ही कहे जा रहे है। हमारे जीवन की आधि -व्याधि-उपाधि के लिए संत समागम समाधि है साधना है।
हम चाहे माने ना माने पर आज संत युवा बच्चों और बूढ़ों के बीच एक सेतु है जो युवापीढ़ी को पतन के मार्ग से उन्नति की दिशा में ले जा रही है और युवापीढ़ी के सही मार्गदर्शन से बुज़ुर्गों का भविष्य और बच्चे सुरक्षित रह सकेंगे।
संत हमारे हितैषी है जिनके प्रवचन हमारी बुरी आदतों को छुड़ाते है। हमे अपने अस्तित्व को ख़तरे से बचाना है संत समागम अपनाना है। हम हमारे आध्यात्मिक व व्यवहारिक जीवन मे संतुलन बनाकर जागरूक व अनासक्त जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करते रहें।
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